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Sunday, 24 May 2009

नफरत मेरे खून से ही मिटा दे

नफरत मेरे खून से ही मिटा दे 
मुझे बस मुहब्बत मुहब्बत बना दे

समा जाए सारा ज़माना इसी में  
मालिक मुझे दिल तू इतना बड़ा दे

वतन को ज़रुरत पड़े गर किसी दिन 
मेरी जिंदगानी मिटा दे लुटा दे

फ़रिश्ता बना घूमता है अकड़ कर 
बना आदमी आदमीयत सिखा दे

यही चाहता हूँ मेरे न्यायदाता  
करूं भूल जितनी बस उतनी सजा दे

1 comment:

वीनस केसरी said...

मतले से ले कर मकते तक बहुत सुन्दर शेर कहे
और पूरी गजल बहर में लगी, हार्दिक बधाई

वीनस केसरी