नफरत मेरे खून से ही मिटा दे मुझे बस मुहब्बत मुहब्बत बना दे
समा जाए सारा ज़माना इसी में
मालिक मुझे दिल तू इतना बड़ा दे
वतन को ज़रुरत पड़े गर किसी दिन
मेरी जिंदगानी मिटा दे लुटा दे
फ़रिश्ता बना घूमता है अकड़ कर
बना आदमी आदमीयत सिखा दे
यही चाहता हूँ मेरे न्यायदाता
करूं भूल जितनी बस उतनी सजा दे
1 comment:
मतले से ले कर मकते तक बहुत सुन्दर शेर कहे
और पूरी गजल बहर में लगी, हार्दिक बधाई
वीनस केसरी
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