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Sunday 21 November, 2010

सुरमन

मेरे एक मित्र हैं सुरेन्द्र चतुर्वेदी. पेशे से पत्रकार. ८ मई १९९५ को उनकी शादी समारोह में मैं उपस्थित था. उनकी पत्नी मनन को देखते ही मुझे लगा कि ये लड़की कुछ अलग है. जितनी चंचल उतनी ही संजीदा. जितनी संवेदनशील उतनी ही कर्मठ. जितनी दयालु उतनी ही कठोर. जितनी सक्रिय उतनी ही सतर्क. मैंने उसे अपनी मुंहबोली बहिन बना लिया. आगे जा कर उसने अपने इन गुणों को अक्षरशः प्रमाणित किया.

सन २००२ में अचानक मुझे पता चला कि तीन बच्चों की मां बन चुकी मनन एक बच्ची (उम्र २ वर्ष) को अपने घर ले आयी है. वह बच्ची किसी भिखारिन के पास थी जो उससे भीख मंगवाती थी और जब वह अत्यधिक बीमार हो गयी तो उसे फुटपाथ पर छोड़ गयी. मनन ने उस बच्ची की सेवा की. वह ठीक हो गयी. उसका नाम रखा गौरी जो अभी आदर्श विद्या मंदिर में पढ़ रही है.
गौरी से जो सिलसिला शुरू हुआ वह आगे भी जारी रहा. गौरी जैसे ही परित्यक्त, पीड़ित, प्रताड़ित बच्चों को वह अपने घर में आश्रय देती गयी. बहुत बाधाएं आयी. अपनों का और पड़ोसियों का विरोध भी सहना पडा. पर इस कार्य में उनके पति सुरेन्द्र ने पूरा सहयोग किया. इस कार्य को विधिसम्मत तरीके से चलाने की सारी कवायद उन्हों ने ही की.
तमाम बाधाओं, अवरोधों, कठिनाइयों और मुसीबतों के बावजूद सुरेन्द्र का "सुर" और मनन का "मन" मिल कर बना "सुरमन" संस्थान उन बच्चों को अपना बनाने के भागीरथी प्रयत्न में लगा है जिनका इस संसार में कोई नहीं है. आज "सुरमन" ६६ बच्चों का आशियाना है और सुरेन्द्र-मनन स्वयं को उन ६६ बच्चों के पिता एवं माता कहते हुए अघाते नहीं हैं. मजे की बात ये कि किसी भी अनजान व्यक्ति के लिए यह जानना बहुत मुश्किल है कि उनमे से वे तीन बच्चे कौन से हैं जो मनन की कोख से पैदा हुए हैं.

गत १७ नवम्बर को मनन का जन्मदिन था. मैंने बधाई दी तो बोली मेरी गिफ्ट ? मैंने कहा क्या चाहिए ? बोली एक ग़ज़ल ऐसी जिसे पढ़ कर मैं यह अनुमान लगा सकूं कि मेरा भाई मुझे कितना समझ पाया है.
मांग साधारण नहीं थी. पर बहिन ने मांग की है तो पूरी तो करनी ही थी. जो ग़ज़ल मैंने मनन के लिए लिखी वह हू-ब-हू आप की सेवा में प्रस्तुत है.

जमीं पर राज तेरा हो हुकूमत में गगन तेरा 
चमेली से गुलाबों से सदा महके चमन तेरा 

मुसीबत से तेरा लड़ना, झगड़ना हर बुराई से 
क़यामत तक रखे कायम खुदा ये बांकपन तेरा 

जनमते ही जिसे छोड़ा, नसीबों ने जिसे मारा 
उन्हें भी छाँव ममता की मिले हर पल जतन तेरा 

न अपना है तेरा अपना, न कोई भी पराया है 
खुदी तूने मिटा डाली न तन तेरा न मन तेरा 

न फुर्सत है न आलस है न नफ़रत को जगह कोई 
लुटाने को मुहब्बत ही हुआ है आगमन तेरा 

सुरों का इन्द्र जब पहुंचा मनन के द्वार पर आकर 
सजा सुरमन बढ़ा सुरमन बना सुरमन वतन तेरा 

चिरंतन सोच सेवा की लिए चलना निरंतर तू 
करेंगे सब मदद तेरी सुनेंगे सब कथन तेरा 


तुम्हारे जन्मदिन पर आज "जोगेश्वर" दुआ मांगे 
रहेगा नाम हर पल ही बुलंदी पर "मनन" तेरा 

Saturday 6 November, 2010

अमीरी में रखा क्या है

पूरे तीन महीने बाद आज बिचारे ब्लॉग की सुध ली है. जबसे बैरन फेस बुक सौतन बन कर खड़ी हो गयी है तब से हमारा ब्लॉग बिचारा हो गया है. वैसे भी नेट पर बैठने के लिए ज्यादा समय तो मिलता नहीं. जो मिलता है वो भी सारा फेस बुक की भेंट चढ़ जाता है. निश्चित ही फेस बुक ज्यादा बड़ा प्लेटफोर्म है जहां ज्यादा लोगों से संपर्क और ज्यादा लोगों तक पहुँच बन सकती है. और राजनीति से जुड़े लोगों के लिए ज्यादा लोगों से जुड़ने का लोभ संवरण कर पाना ज़रा मुश्किल होता है. ज्यादा लोगों से जुड़ाव हमारे लिए नशे से कम नहीं होता है. इसलिए................... मुझको यारों माफ़ करना मैं नशे में हूँ !

खैर....... ! सबसे पहले तो इस ब्लॉग के सम्माननीय पाठकों और प्रशंसकों को दिवाली की हार्दिक शुभ कामनाएं ! और अब आनंद लीजिये एक ताज़ा ग़ज़ल का !

अमीरी में रखा क्या है 
ग़रीबी में बुरा क्या है 

कभी पूछो फकीरों से 
फकीरी में मज़ा क्या है 

तुझे भी एक दिन जाना 
बचा अब रास्ता क्या है 

चला चल जानिबे मंजिल 
मुसाफिर सोचता क्या है 

पता क्या है हवाओं को 
दिए का हौसला क्या है 

तुझे मिलना बहुत चाहूँ 
बता तेरा पता क्या है 

समझना है बहुत मुश्किल 
खता क्या थी सज़ा क्या है 

फिरे क्यों पूछता सब को 
मुक़द्दर में लिखा क्या है 

बताये कौन बन्दे को 
खुदाओं की रज़ा क्या है 

अहमियत खुद समझ अपनी 
बिना तेरे खुदा क्या है 

कभी तो सोच "जोगेश्वर" 
गया क्या है बचा क्या है