tag:blogger.com,1999:blog-2803077861721794144.post7090894465618351936..comments2023-09-26T16:29:31.719+05:30Comments on Jogeshwar Garg: रौशनी करjogeshwar garghttp://www.blogger.com/profile/18415761246834530956noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-2803077861721794144.post-39112880014034405832010-05-10T15:45:20.719+05:302010-05-10T15:45:20.719+05:30आदरणीय जोगेश्वर जी,
वन्दे!
बहुत दिनोँ बाद सक्रिय ह...आदरणीय जोगेश्वर जी,<br />वन्दे!<br />बहुत दिनोँ बाद सक्रिय हुए हैँ आप। आपकी यह पारी जोरदार है।बधाई! आपकी दोनोँ ग़ज़लेँ शानदार और जानदार हैँ।दूसरी यानी छोटी बहर वाली ग़ज़ल तो वाकई वज़नदार है। इतनी छोटी बहर में ग़ज़ल कहना बहुत कठिन काम है।इस छंद के दादा गुरू भी इतनी छोटी बहर मेँ ग़ज़ल कहने को तरसते थ।आपको नमन!ओम पुरोहित'कागद'https://www.blogger.com/profile/13038563076040511110noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2803077861721794144.post-77821351245871275232010-05-09T23:04:10.765+05:302010-05-09T23:04:10.765+05:30शानदार ग़ज़ल...कुछ द्रोणाचार्य मिल रहे है मुझे ......शानदार ग़ज़ल...कुछ द्रोणाचार्य मिल रहे है मुझे ...!!!<br /><br />आशा है आपसे बहुत कुछ सीखूंगा ....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2803077861721794144.post-3584937296737436632010-05-09T22:28:28.617+05:302010-05-09T22:28:28.617+05:30हार मेरी
शहर के सर
बहुत खूब .....
बूँद हूँ मैं ...हार मेरी <br />शहर के सर<br /><br />बहुत खूब .....<br /><br />बूँद हूँ मैं <br />तू समंदर <br /><br />छोड़ कल की<br />आज ही कर<br /><br />अति सुंदर ......!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2803077861721794144.post-59968032504758280252010-05-09T15:36:42.578+05:302010-05-09T15:36:42.578+05:30बहुत सुंदर ग़ज़ल.बहुत सुंदर ग़ज़ल.Rajeev Bharolhttps://www.blogger.com/profile/03264770372242389777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2803077861721794144.post-58529566917228877592010-05-07T17:30:58.833+05:302010-05-07T17:30:58.833+05:30धन्यवाद राजेन्द्रजी !
सामान्यतया मैं हर ग़ज़ल में मक...धन्यवाद राजेन्द्रजी !<br />सामान्यतया मैं हर ग़ज़ल में मक्ते का शेर ज़रूर कहता हूँ. मक्ता एक चुनौती होता है शायर के लिए. यह चुनौती मुझे हर ग़ज़ल के साथ नया आनंद दे कर जाती है. पर कभी कभी बहर की बंदिशें इतना मज़बूर कर देती है कि हार माननी पड़ती है. इस ग़ज़ल में भी मुझे हारने की कसक झेलनी पडी है. आपने अच्छा मक्ता जोड़ा मगर वह भी बहर से बाहर है क्योंकि एक मात्रा बढ़ रही है. ऐसा समझौता ही करना होता तो मैं भी कर लेता. कुल सात मात्राओं की बहर ली है मैंने और छः मात्राएँ तो मेरे नाम में ही खप जाती हैं. इसलिए मैं अपनी हार कबूल करता हूँ.<br />एक बार फिर धन्यवाद !jogeshwar garghttps://www.blogger.com/profile/18415761246834530956noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2803077861721794144.post-53002322714946423152010-05-07T06:13:29.022+05:302010-05-07T06:13:29.022+05:30जोगेश्वरजी
बढ़िया लिखा । वाह-वाह !
रौशनी कर
घर जल...जोगेश्वरजी<br />बढ़िया लिखा । वाह-वाह !<br /><br />रौशनी कर <br />घर जला कर<br /><br />शिव बने शिव <br />ज़हर पी कर <br /><br />मौत से मिल <br />मुस्कुरा कर <br /><br />शानदार शे'र हैं ।<br /><br />मक़्ता क़बूल फ़रमाएं… <br /><br /><a rel="nofollow">"ख़ूब लिखते<br />तुम जोगेश्वर"</a><br /><br /><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com" rel="nofollow">शस्वरं</a> - राजेन्द्र स्वर्णकारRajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.com