Subscribe

RSS Feed (xml)

Powered By

Skin Design:
Free Blogger Skins

Powered by Blogger

Friday, 8 July 2011

तुम्हारी बेरुखी किसको बताएं

पूरे सात माह हो गए मेरे ब्लॉग को उपेक्षा के सागर में गोते लगाते हुए. ईश्वर ऐसे बुरे दिन किसी ब्लॉग को नहीं दिखाए. लीजिये पेश है मेरे अपने ब्लॉग के प्रति मेरी इस बेरुखी को समर्पित एक ग़ज़ल. देखते हैं कितने महानुभावों तक पहुँचती है यह खबर कि मेरे ब्लॉग ने करवट ली है.

तुम्हारी बेरुखी किसको बताएं
छुपा कर आंसुओं को मुस्कुराएं

संभल कर खोलता हूँ मैं जुबां को
उजागर राज़ अपने हो न जाएँ

तुम्हारे साथ चाहूँ वन-भ्रमण मैं
मगर डर है कहीं हम खो न जाएँ

तुम्हारे साथ मुश्किल एक पल भी
जन्म का साथ केवल कल्पनाएँ

नज़र के सामने तस्वीर तेरी
कभी जब बेखुदी में सिर झुकायें

मुझे वो आजमा कर बोलते हैं
चलो फिर से इसी को आजमायें

तुझे भी याद है क्या ज़ुल्म तेरे
मुझे तो याद है अपनी खताएं

गुजारिश है कि किश्तों में नहीं दो
सुना दो थोक में सारी सजायें

रखी है मांग "जोगेश्वर" ज़रा सी
मुझे मेरी ग़ज़ल वो खुद सुनाएं