होलिका दहन करके घर लौटते समय होली के माहौल ने अपना असर दिखाना प्रारम्भ कर दिया। नतीजा जो निकला वो आपके सामने हाजिर है :
हल्ला गुल्ला कुछ न हुआ, फिर होली क्या ?
बौराया गर ना बबुआ, फिर होली क्या ?
रंग डाला है पोर पोर इस तन का तो
मन को रत्ती भर न छुआ, फिर होली क्या ?
अपनों से यदि गले नहीं मिल पाए तुम
मिली बुजुर्गों की न दुआ, फिर होली क्या ?
खींच तान कर ओढ़ रखी हैं मुस्कानें
भीतर बुझा बुझा मनुआ, फिर होली क्या ?
सब कुछ दाँव लगा पर प्रीत निभा प्यारे
इतना भी खेला न जुआ, फिर होली क्या ?
शीश झुका कर पीछे पीछे चलते हो
बने न जीवन में अगुआ, फिर होली क्या ?
धूप उम्र की ढलने आयी "जोगेश्वर"
बने रहे अब भी ललुआ, फिर होली क्या ?