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Wednesday, 27 March 2013


होलिका दहन करके घर लौटते समय होली के माहौल ने अपना असर दिखाना प्रारम्भ कर दिया। नतीजा जो निकला वो आपके सामने हाजिर है :


हल्ला गुल्ला कुछ न हुआ, फिर होली क्या ?
बौराया गर ना बबुआ, फिर होली क्या ?

रंग डाला है पोर पोर इस तन का तो 
मन को रत्ती भर न छुआ, फिर होली क्या ?

अपनों से यदि गले नहीं मिल पाए तुम 
मिली बुजुर्गों की न दुआ, फिर होली क्या ?

खींच तान कर ओढ़ रखी हैं मुस्कानें 
भीतर बुझा बुझा मनुआ, फिर होली क्या ?

सब कुछ दाँव लगा पर प्रीत निभा प्यारे 
इतना भी खेला न जुआ, फिर होली क्या ?

शीश झुका कर पीछे पीछे चलते हो 
बने न जीवन में अगुआ, फिर होली क्या ?

धूप उम्र की ढलने आयी "जोगेश्वर"
बने रहे अब भी ललुआ, फिर होली क्या ?