कोई हुआ गुलाम किसीका
दिल पर लगता खंज़र जैसा
तेरे लब पर नाम किसीका
ऐसा ज़ुल्म कभी मत करना
मेरा ख़त पैगाम किसीका
सुख तो ठहरा इक बंजारा
सुबह किसीका शाम किसीका
ऐसा भी होता है यारों
मेरा दुःख आराम किसीका
इंतजाम में इतनी खामी
हाथ किसीका जाम किसीका
न्याय तुम्हारा देखा सबने
काम किसीका नाम किसीका
गायब हुई अमानत यारों
फिर से निकला राम किसीका
सब के सब बिकने को आतुर
कौन लगाए दाम किसीका
"जोगेश्वर" को इंतज़ार है
आये आज सलाम किसीका
4 comments:
Waah ! waah ! Waah !!
Bahut bahut sundar rachna....ekdam man moh gayi...
क्या कहे भाई जी आपको, गजब कर दिये हो,...........कमाल की रचना
सुन्दर!!
leejiye saahab salaam hamara.... aapko aur aapki kavitaai ko....
ab na kahiyega kisi ke salaam ka intjar hai..
Sunder... Bahut sunder..
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