टिमटिमाता एक दीपक खूब ताक़तवर हुआ
यह समर तो सिर्फ़ उसके ही भरोसे सर हुआ
इक समंदर के मुकाबिल मानता हूँ मैं उसे
ओस की वह बूँद जिससे हलक़ मेरा तर हुआ
मैं अचंभित तू अचंभित हैं अचंभित लोग सब
कौन समझाये किसे ये क्या हुआ क्योंकर हुआ
रास्ता उम्मीद का दिखला गया संसार को
एक नन्हा-सा दिया था जो फना जलकर हुआ
पत्थरों में शर्म का अहसास उस दिन भर गया
सुन लिया जिस दिन उन्होंने आदमी पत्थर हुआ
फूल ले कर जो खड़े थे कल तलक मेरे लिए
वक्त बदला तो उन्हीं के हाथ में खंज़र हुआ
लोग "जोगेश्वर" नकाबों में हिजाबों में रहे
और मेरी ज़िंदगी में जो हुआ खुल कर हुआ
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5 comments:
बहुत बेहतरीन रचना...
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल ’समीर’
मनुष्य की गुम होती सम्वेदना को प्रदर्शैत करती यह अत्यंत सुन्दर पंक्तियाँ हैं
पत्थरों में शर्म का अहसास उस दिन भर गया
सुन लिया जिस दिन उन्होंने आदमी पत्थर हुआ
बधाई ।
इक समंदर के मुकाबिल मानता हूँ मैं उसे
ओस की वह बूँद जिससे हलक़ मेरा तर हुआ
रास्ता उम्मीद का दिखला गया संसार को
एक नन्हा-सा दिया था जो फना जलकर हुआ
पत्थरों में शर्म का अहसास उस दिन भर गया
सुन लिया जिस दिन उन्होंने आदमी पत्थर हुआ
बड़ी ग़ज़ब की ग़ज़ल लिखी है आपने जोगेश्वर जी.
ढेरों बधाइयाँ और दीपावली की शुभकामनाएँ.
इक समंदर के मुकाबिल मानता हूँ मैं उसे
ओस की वह बूँद जिससे हलक़ मेरा तर हुआ
बहुत सुंदर ।शुभ दीपावली ।
भाई साहब जी!आपकी गजलों के शेर लाजवाब हैं। तबीयत खुश हो गई। वाह! वाह!
आपको
नव वर्ष की मंगलकानाओं सहित
सन् 2010
यूँ आपके लिए शुभ, सन् दो हजार दस हो।
है कामना हमारी, जीवन में चरम रस हो।।
जब सायकिल की सोचें, मिल जाए हीरोहोडा-
हो कार की तमन्ना गैरिज में खड़ी बस हो।
कंज्यूम न कर पाएं फ्री - पास मिलें इतने-
मेला हो कि ठेला हो, फिल्में हो कि सरकस हो।
झाँसे में नहीं आवें दे कोई अगर झाँसा-
हाँ, आपकी बातों में झाँसे की जगह झस हो।
जो भेजी गई ग्रीटिंग को पा के न दे उत्तर-
बीवी तो मिले उसको लेकिन बड़ी कर्कस हो।
इसको हृदय के लाकर में ही संजो के रखना-
शुभकामना का चेक ये हरगिज नहीं वापस हो।
मिलती है कामियाबी इक दिन जरूर उनको-
जिसमें विवेक-बल हो, संकल्प हो, साहस हो।
(डा० डंडा लखनवी)
सचलभाष-09336089753
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