अर्ज़ भगवान से ये है किसी दिन गर सुने मेरी
तुम्हारी आँख का पानी हथेली पर गिरे मेरी
कभी मैं सोचता हूँ आपबीती लिख रखूँ अपनी
बला से दास्ताँ दुनिया पढ़े या ना पढ़े मेरी
सितमगर का कभी तो हाल ऐसा कर मेरे मौला
कभी रोते बिलखते वो कहानी खुद कहे मेरी
वतन के ही लिए हर सांस मेरी देश की खातिर
लहू की या पसीने की सदा धारा बहे मेरी
मुझे तक़लीफ़ दे ग़म दे मुसीबत दे मगर मालिक
मुझे रुसवां न कर संसार में इज्ज़त रहे मेरी
अदब से सर झुकाऊँ मैं सभी को और ये चाहूँ
किसी के सामने नज़रें नहीं हरगिज़ झुके मेरी
उठा कर बोझ "जोगेश्वर" न सीने पर रखो इतना
कभी धड़कन ठहरती है कभी सांसें रुके मेरी
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4 comments:
कभी मैं सोचता हूँ आपबीती लिख रखूँ अपनी
बला से दास्ताँ दुनिया पढ़े या ना पढ़े मेरी
-बहुत खूब!!
अदब से सर झुकाऊँ मैं सभी को और ये चाहूँ
किसी के सामने नज़रें नहीं हरगिज़ झुके मेरी
kya khoob kaha hai, par log to chahte hain ke aap pet ke bal letkar
nazroon ko zameen main gada den.
Prem Srdhye,
Sh Jogeswar ji,
Nameskar,
kabhi derken therti h. kabhi sanse ruke nahi.Arj bhegwan s h.bhut hi payri ghazal legi.behtrin ghazal k liye Aap ko sadhu-bad.
NARESH MEHAN
HANUMANGARH JN
अदब से जो सर झुका रहेगा
न धड़कन थकेंगी
न साँसें रुकेंगी
न आंसू बहेगा
न बोझ रहेगा
'जोग' का योग ईश्वर से बना रहेगा.
आशा है कि अगली पोस्ट में लोकशाही में भगवानतुल्य 'वोटर' के नाम आपका शब्दार्पण पढ़ने को मिलेगा.
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