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Sunday, 14 February 2010

न सोचा था कभी

न सोचा था कभी दे जाएगा ऐसी सज़ा कोई
कभी कह जाएगा यारों मुझे भी बेवफा कोई

तुम्हारे प्रेम के दो  घूँट मैंने पी लिए जब से
मुझे चढ़ता नहीं है दूसरा अब तो नशा कोई

गिले सब दूर शिकवे भी शिकायत भी नहीं रहती
दिलों के दरमियान रहता नहीं जब फासला कोई

बहस बेकार है उनको सबूतों से नहीं मतलब
उन्होंने लिख लिया होगा शर्तिया फैसला कोई

मुझे चिंता लगी है क्या बताउंगा उन्हें आखिर
अचानक पूछने आया अगर मेरा पता कोई

न दुनिया ही रही खुश और न भगवान खुश होंगे
न "जोगेश्वर" बना कर रख सका तू सिलसिला कोई

2 comments:

डॉ. राजेश नीरव said...

बहुत अच्छी रचना...बधाई..

वीनस केसरी said...

वाह
जोगेश्वर जी
बहुत सुन्दर गजल कही है

कई दिन के बाद आपके ब्लॉग पर आया आजकल आप गजल भी कम पोस्ट कह रहे हैं आजकल

इंतज़ार रहता है आपकी पोस्ट का