हुआ है क्या अजब हम पर मुहब्बत का असर देखो
इधर मैं होश खो बैठा उधर तू बेखबर देखो
भटकते जंगलों में उम्र की हमने बसर देखो
हमारा हाल कैसा है कभी तो पूछ कर देखो
तुम्हारी ये अदा मेरा कलेजा चीर ही देगी
उचटती-सी नज़र मुझ पर पलट कर फिर उधर देखो
निभाया साथ तुमसे दूर रह कर उम्र भर जिसका
मुझे छोड़ा उसीने आज तेरे नाम पर देखो
महज इंसान हूँ मैं भी तुम्हारी ही तरह यारों
ज़मीं पर ही तलाशो तुम मुझे मत चाँद पर देखो
उसे रोते बिलखते छोड़ कर वह आ गया कैसे
कभी रोता रहा जिसके लिए वह रात भर देखो
सियासत का जिन्हें चस्का उन्हें ये शौक़ भी होगा
किसी अखबार में फोटो किसी में हो खबर देखो
सिखाया है बुजुर्गों ने हमेशा ये सबक हमको
न देखो राह के कांटे अगर देखो सफ़र देखो
करो स्वीकार "जोगेश्वर" सचाई हौसला रख कर
समय की चाल बदले तो बदलती हर नज़र देखो
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9 comments:
सिखाया है बुजुर्गों ने हमेशा ये सबक हमको
न देखो राह के कांटे अगर देखो सफ़र देखो
करो स्वीकार "जोगेश्वर" सचाई हौसला रख कर
समय की चाल बदले तो बदलती हर नज़र देखो
बस एक शब्द - उम्दा
सिखाया है बुजुर्गों ने हमेशा ये सबक हमको
न देखो राह के कांटे अगर देखो सफ़र देखो
-बहुत उम्दा बात!! वाह!
हुआ है क्या अजब हम पर मुहब्बत का असर देखो
इधर मैं होश खो बैठा उधर तू बेखबर देखो
उसे रोते बिलखते छोड़ कर वह आ गया कैसे
कभी रोता रहा जिसके लिए वह रात भर देखो
सिखाया है बुजुर्गों ने हमेशा ये सबक हमको
न देखो राह के कांटे अगर देखो सफ़र देखो
वाह जोगेश्वरजी … अच्छी ग़ज़ल कही है । मुबारक हो !
ज़ुबां अब नाम जोगेश्वर तुम्हारा बारहा लेती
दिमागो-दिल पॅ छोड़ा है ग़ज़ल ने वो असर देखो
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut hi umda ghazal hai jogeshwar ji..kaheen kaheen kuch cheezen khatkeen ..jaise "tu, tere " in sab shabdon ke saath aapne "dekho " ka istemal kiya hai ..jab ki zabaan ki mani jaaye.....to tu ya tujhe...jaise shabdon ke sath "dekh " ana chahiye...baki mujhe pasand hai aap ki ghazal ....han pichli ghazalon se kuch halki lagi ...
हुआ है क्या अजब हम पर मुहब्बत का असर देखो
इधर मैं होश खो बैठा उधर तू बेखबर देखो
आप तो इतने अच्छे कवी हो गर्ग जी. आप राजनिति में कैसे चले गए ! आप ने बहुत ही अच्छा लिखा है. बहुत बहुत बधाई. आप साहित्य के संसार में ही रहिये.आप से पहचान कर बहुत ख़ुशी हुई. घणी खम्मा
ग़ज़ल खूब कही आपने.
बहुत सुंदर. लाजवाब.
Excellent.
-Rajeev Bharol
आदरणीय गर्ग साहब, प्रणाम ,
मैने आप की रचनाओ को पढ़ा , सभी रचनाये एक से बढ़कर एक है, और बहुत ही उम्द्दा है,आपकी लेखन शैली मुझे बहुत अच्छी लगी, आप यदि अनुमति दे तो मै आपकी रचना "हुआ है क्या अजब हम पर" मै अपनी साईट www.openbooksonline.com पर छाप दू , या आप स्वयम sign in kar पोस्ट कर देते तो और अच्छा होता, जिससे open books online के सभी सदस्यों के साथ साथ open books online के सभी visitor भी आपकी रचनाओ को पढ़ पाते,
bhisab,pranam me to keval pranam kah kar hi aap ki is khubsurat rachna ke li aap ko badhi de sakta hu
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