जल प्रदूषित और ज़हरीली हवाएं देखिये
और फिर उनके बयानों की अदाएं देखिये
मूक दर्शक बन खडा है आदमी जो आम है
शोक की या शौक़ की सारी सभाएं देखिये
वस्त्र की जो ओट है तन पर उसे भी चीर कर
भेड़िये सी ताकती भूखी निगाहें देखिये
क्रोध हो अपमान हो या ईर्ष्या या द्वेष हो
रोज तिल तिल कर जलाती ये चिताएं देखिये
जो सबल हैं और सक्षम उनके हर अपराध की
मिल रही है बेगुनाहों को सजायें देखिये
पा गए सब कुछ मगर फिर भी जुगाड़ों में जुटे
सब्र करने की हमें उनकी सलाहें देखिये
वृक्ष "जोगेश्वर" अगर कटते गए कटते गए
कब तलक रह पायेंगी दिलकश फिजायें देखिये
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5 comments:
जो सबल हैं और सक्षम उनके हर अपराध की
मिल रही है बेगुनाहों को सजायें देखिये
पा गए सब कुछ मगर फिर भी जुगाड़ों में जुटे
सब्र करने की हमें उनकी सलाहें देखिये
वृक्ष "जोगेश्वर" अगर कटते गए कटते गए
कब तलक रह पायेंगी दिलकश फिजायें देखिये
बहुत खूबसूरत मकता
सुन्दर सन्देश देती गजल
वाह!! बहुत बेहतरीन..आनन्द आया.
हरि ओम !
अच्छी सधी हुई शब्दावली में , बहर को निभाते हुए बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने , जोगेश्वरजी !
वर्तमान का सच्चा चित्रण किया है …
"जो सबल हैं और सक्षम उनके हर अपराध की
मिल रही है बेगुनाहों को सजायें देखिये"
बधाई !
prasangik...behad achhi ghazal ...
जो सबल हैं और सक्षम उनके हर अपराध की
मिल रही है बेगुनाहों को सजायें देखिये!
बहुत सटीक बयान ,देश की व्यवस्था पर .
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