सामान्यतया एक ही ग़ज़ल के विभिन्न अशआर अपनेआप में स्वतंत्र इकाई होते हैं. रदीफ़/काफिया के बंधन की बात छोड़ दें तो कथ्य की दृष्टि से हर शेर एक स्वतंत्र एवं परिपूर्ण कविता होती है. रदीफ़, काफिया और बहर उन स्वतंत्र इकाइयों को एक बड़ी इकाई का स्वरुप प्रदान करते है. मगर कभी कभी ऐसा भी होता है कि किसी ग़ज़ल के सारे शेर एक ही विषय-वस्तु को अलग अलग दृष्टिकोण से परिभाषित और विस्तारित करते हैं. उर्दू अदब में ऐसी ग़ज़ल को मुसलसल ग़ज़ल कहा जाता है.
अपनी १०० वीं पोस्ट के रूप में आज मैं ऐसी ही एक मुसलसल ग़ज़ल आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ. इस में कन्हैया के प्रति एवं कन्हैया से सम्बंधित मुद्दों पर राधा एवं उनकी सखियों का दृष्टिकोण प्रकट हो रहा है. चूंकि कृष्ण १६ कलाओं से परिपूर्ण अवतार थे इसलिए इस ग़ज़ल के कुल अशआर भी १६ ही हैं. शेष व्याख्या आप लोग ही करेंगे तो अधिक अच्छा रहेगा.
ब्रज की यह अरदास कन्हैया
पुन: रचा दे रास कन्हैया
मुरझाई सब सखी सहेली
राधा आज उदास कन्हैया
विरह अगन जीवन भर झेली
छोटा सा मधुमास कन्हैया
बछड़े भूले मां के थन को
गौ ने छोड़ा ग्रास कन्हैया
यमुना हो गयी और सांवरी
तुम ले गए उजास कन्हैया
तुम बिन दही लगे है खट्टा
मक्खन में न मिठास कन्हैया
तन की आँखों से ओझल हो
मन के हर पल पास कन्हैया
मन में आप समाये ऐसे
ज्यों फूलों में बास कन्हैया
हम हरगिज जाने ना देते
यदि होता अहसास कन्हैया
मेले ठेले उत्सव अवसर
तुम बिन क्या उल्लास कन्हैया
कुञ्ज गली भूतों का डेरा
घर में भी बनवास कन्हैया
उद्धव दे कर ज्ञान प्रेम का
करते हैं उपहास कन्हैया
इक पल भी तुमको नहीं भूले
करते खूब प्रयास कन्हैया
कौन कृष्ण है कौन द्वारिका
ब्रज का तो विश्वास कन्हैया
सिर्फ कन्हैया सिर्फ कन्हैया
आती जाती श्वास कन्हैया
"जोगेश्वर" जीवन की रक्षक
पुनर्मिलन की आस कन्हैया
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12 comments:
waah abhibhut hua ye padhke jai shri krishn...
jai shree krishana
bahut sundar bhajan he man ho raha he ise apni hi rag me gaun
और ये हुए ८०-९० पूरे १००
ह्रदय से इस घड़ी का इंतज़ार था
और इंतज़ार था आपकी गजल का
और जैसा सोचा था उससे ज्यादा आनंद आया
हर एक शेर काबिले गौर और काबिले तारीफ़ है
शतकीय लेख की हार्दिक बधाई
मै साल भर से आपको पढ़ रहा हूँ कोई पोस्ट नहीं छोड़ी, ये ज़रूर है कि कुछ पोस्ट पर कमेन्ट नहीं दिये
ईश्वर करे आप लिखते रहें और हम पढते रहे
और यह सिलसिला चलता रहे ... बस चलता रहे
बहुत सुन्दर ,,,१०० वीं रचना के लिए बधाई !!
आपकी इस 16 कलाओं से सरोबार कन्हैयामय ग़ज़ल एक विशिष्ट ही आनंद लिये है। बधाई 100 वीं पोस्ट, ब्लॉग की प्रथम वर्षगॉंठ और इस विशिष्ट ग़ज़ल के लिये।
गर्ग साहब सबसे पहले तो सौंवी पोस्ट की बधाई स्वीकार करें...आप ऐसे ही कीर्तिमान स्थापित करते रहें...मुसलसल ग़ज़ल लिखना कठिन विधा है इसीलिए बहुत कम शायर ही यादगार मुसलसल ग़ज़ल कह पाए हैं...इस दिशा में आपका ये प्रयास अत्यंत सराहनीय है...बहुत अच्छे शेर निकाले हैं और खूब निकले हैं...मेरी बधाई स्वीकार करें...
नीरज
century mar di aapne ..bahut bahut badhai aap ko .. ghazal badi achhi lagi ...ghazal ka ye rang bahut kam dekhne ko milta hai .. :)
बहुत बहुत बधाई १०० पोस्ट की मैं तो दो सालों में भी शतक नहीं लगा पाई .....
ग़ज़ल कन्हैया के रस रंग में डूबी हुई अनुपम सौंदर्य से अभिभूत .....१६ अश'आर वह भी कमाल के ......अद्भुत .....!!
ग़ज़ल के बारे में जब नीरज जी कुछ कहते हैं तो मेरे लिए उसमे सिर्फ हामी भरने का ही काम बचता है. आपको बहुत शुभकामनाएं.
जोगेश्वरजी ,
विलंब से ही सही लेकिन ,
पहले तो सौवीं पोस्ट की बधाई !
मुसलसल ग़ज़ल तो शानदार है ही …
ब्रज की यह अरदास कन्हैया
पुन: रचा दे रास कन्हैया
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
jalor ki dharti ke tino vir gajalkaro anand parmand aur jogesh ke triveni sangam ko sadhuvad. apki imandar koshish sacmuth inam ke layak hai. mai khud kai bar tino ki kai rachnao ka pahla shrota raha hu isliye ap ki imandari aur rachnadharmita ko attested kar sakta hu. KANHAIYALAL KHANDELWAL. editor MARWAR CHETNA.
jalor ki dharti ke tino vir gajalkaro anand parmand aur jogesh ke triveni sangam ko sadhuvad. apki imandar koshish sacmuth inam ke layak hai. mai khud kai bar tino ki kai rachnao ka pahla shrota raha hu isliye ap ki imandari aur rachnadharmita ko attested kar sakta hu. KANHAIYALAL KHANDELWAL. editor MARWAR CHETNA.
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