पूरे सात माह हो गए मेरे ब्लॉग को उपेक्षा के सागर में गोते लगाते हुए. ईश्वर ऐसे बुरे दिन किसी ब्लॉग को नहीं दिखाए. लीजिये पेश है मेरे अपने ब्लॉग के प्रति मेरी इस बेरुखी को समर्पित एक ग़ज़ल. देखते हैं कितने महानुभावों तक पहुँचती है यह खबर कि मेरे ब्लॉग ने करवट ली है.
तुम्हारी बेरुखी किसको बताएं
छुपा कर आंसुओं को मुस्कुराएं
संभल कर खोलता हूँ मैं जुबां को
उजागर राज़ अपने हो न जाएँ
तुम्हारे साथ चाहूँ वन-भ्रमण मैं
मगर डर है कहीं हम खो न जाएँ
तुम्हारे साथ मुश्किल एक पल भी
जन्म का साथ केवल कल्पनाएँ
नज़र के सामने तस्वीर तेरी
कभी जब बेखुदी में सिर झुकायें
मुझे वो आजमा कर बोलते हैं
चलो फिर से इसी को आजमायें
तुझे भी याद है क्या ज़ुल्म तेरे
मुझे तो याद है अपनी खताएं
गुजारिश है कि किश्तों में नहीं दो
सुना दो थोक में सारी सजायें
रखी है मांग "जोगेश्वर" ज़रा सी
मुझे मेरी ग़ज़ल वो खुद सुनाएं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
13 comments:
तुम्हारे साथ मुश्किल एक पल भी
जन्म का साथ केवल कल्पनाएँ
तुझे भी याद है क्या ज़ुल्म तेरे
मुझे तो याद है अपनी खताएं
भले ही सात माह बाद लौटे हैं लेकिन तेवर वो ही हैं...वाह...क्या बेजोड़ ग़ज़ल कही है आपने...हर शेर ख़ूबसूरती से तराशा हुआ है...मेरी बधाई स्वीकारें
नीरज
आदरणीय नीरज जी !
सात माह बाद सन २०११ में यह मेरी पहली पोस्ट है और आप इसके पहले टिप्पणीकार हैं.
बधाई और आभार !!
गुजारिश है कि किश्तों में नहीं दो
सुना दो थोक में सारी सजायें -----wahhh jogeshwer ji bahut khoob...very nice come back... umda paeshkash ke liye badhayi...:)
dhanyavaad Kavita ji !
Welcome back.
Guzarish hei ki kishton mein...
Kal phir aata hoon tippani ke liye.
kapoor saahab !
thanks a lot !
सहज सृजन तो सृष्टि के नियमों से साम्यता रखता है। अगर एक परिपक्व ग़ज़ल को ब्लॉग तक आने में सात माह लगे तो क्या गुनाह हो गया।
ग़ज़ल खूबसूरत एहसासात का आईना है।
गुजारिश है कि किश्तों में नहीं दो
सुना दो थोक में सारी सज़ायें।
पर अभी अभी हुआ शेर लें:
कत्ल करते हैं वो, तो किश्तों में
और हम उफ़ तलक नहीं करते।
बहुत धन्यवाद कपूर साहब !
करे वो क़त्ल फिर भी वहम ये है
वो कभी भी गलत नहीं करते
सादर !
आदरणीय जोगेश्वर गर्ग जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
महीनों आपके यहां नई रचना के आस्वादन की आस में चक्कर लगा लगा कर निराश लौटते रहे हैं …
मत्ला तो आपसे हमारी जो शिकायत है उसकी तर्ज़ुमानी कर रहा है
तुम्हारी बेरुखी किसको बताएं
छुपा कर आंसुओं को मुस्कुराएं
:)
तुझे भी याद है क्या ज़ुल्म तेरे
मुझे तो याद है अपनी खताएं
गुजारिश है कि किश्तों में नहीं दो
सुना दो थोक में सारी सजायें
आहाऽऽहाऽऽ… बहुत प्यारे शे'र हैं
पूरी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !
रखी है मांग "जोगेश्वर" ज़रा सी
मुझे मेरी ग़ज़ल वो खुद सुनाएं
आपने जिन्हें कहा , उनकी क्या प्रतिक्रिया रही यह तो वे जानें … मगर हम तो गुनगुना रहे हैं आपकी यह ख़ूबसूरत ग़ज़ल !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आपनैं घणैमान नूंतो है सा …
राजस्थानी भाषा में म्हारी एक ग़ज़ल पढबा-सुणबा वास्तै
म्हारै राजस्थानी ब्लॉग ओळ्यूं मरुधर देश री…
पर जरूर पधारजो सा
मोकळी बधाई !
घणी घणी शुभकामनावां !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut aabhaar ! raajendra jee !
तुम्हारे साथ चाहूँ वन-भ्रमण मैं
मगर डर है कहीं हम खो न जाएँ
वन-भ्रमण में साथ की चाह.....मन को गहरे तक छूने वाला उम्दा शेर .
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें ।
धन्यवाद वर्षाजी !
Post a Comment