कतारें लगा कर खडा आदमी
मुझे भी बना दो बड़ा आदमी
कभी तान सीना खडा आदमी
कभी बुजदिलों सा पडा आदमी
बड़ा ठोस चट्टान सा था मगर
ज़रा छू लिया रो पडा आदमी
लगे खूबसूरत मगर अर्थ क्या
नगीने सरीखा जडा आदमी
मिले चार पैसे कि पद मिल गया
गया बिन पिए लड़खडा आदमी
कभी हो गया फूल से भी नरम
कभी पत्थरों से कडा आदमी
करे याद दुनिया कि था "जोगेश्वर"
उसूलों की खातिर लड़ा आदमी
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3 comments:
मिले चार पैसे कि पद मिल गया
गया बिन पिए लड़खडा आदमी ..
आपकी हर पोस्ट आपसे उम्मीद बढा जाती है और हर अगली नज़्म उस उम्मीद पर खरी उतरती है ....
बड़ा ठोस चट्टान सा था मगर
ज़रा छू लिया रो पडा आदमी
-बहुत बढ़िया!!
"मुझे भी बना दो बड़ा आदमी" ,पढ़ कर कुछ पंक्तिया मेरे दिमाग में उभर कर आई है--
मैं आज भी उसी मोड़ पर खड़ा हूँ,
टूटी हुई तलवार से अपनी किस्मत से लड़ रहा हूँ
आने वाले आ रहे है,
जाने वाले जा रहे है
एक मैं खड़ा हूँ ,
जो सबको देख रहा हूँ -देख रहा हूँ
और सिर्फ़ देख रहा हूँ
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