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Saturday, 19 December 2009

छोटे से जीवन की खातिर

छोटे से जीवन की खातिर कितने ताम-झाम कर डाले 
आफत-कष्ट-मुसीबत हमने अपनी झोली में भर डाले 


छाई हैं घनघोर घटायें बादल अब बरसे तब बरसे 
हम पागल दीवाने बैठे नदी किनारे छप्पर डाले 

एक शब्द का उत्तर था तुम हाँ कहते या ना कहते 
पग-पग पर लगवाये फेरे कदम कदम पर चक्कर डाले 

मुफ्त मुसीबत देने वाले खुशियों की कीमत मांगे 
एक समंदर आंसूं देकर मुस्कानें मुट्ठी भर डाले 

उनके हाथों में गुलदस्ते पांवों तले गुलाब बिछे 
मेरी आस्तीन में लेकिन किसने इतने विषधर डाले 

मेरे यारों की मसखरियाँ कितनी खौफनाक निकली 
नाम लिया मरहम का लेकिन दिल के अन्दर नश्तर डाले 

सबने खूब परिक्षा ले ली तू भी पीछे क्यों रहता 
एक ओखली रख कर बोला सर इसमें "जोगेश्वर" डाले 

2 comments:

www.SAMWAAD.com said...

जीवन को आपने अच्छे से समझा है।


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जल में रह कर भी बेचारा प्यासा सा रह जाता है।
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।

शोभित जैन said...

हर बार की तरह बेहतरीन ....
इस मिसरे ने तो दिल ले लिया

एक शब्द का उत्तर था तुम हाँ कहते या ना कहते पग-पग पर लगवाये फेरे कदम कदम पर चक्कर डाले