आए अब तक सावन कितने
सूखे फ़िर भी मधुबन कितने
घर है कितने बिखरे बिखरे
कटते बंटते आँगन कितने
जाति क्षेत्र भाषाएँ मज़हब
कर डाले सीमांकन कितने
करी किसीने घोर तपस्या
डोल उठे सिंहासन कितने
चेहरे पर यदि मैल जमा हो
फ़िर हो उजले दर्पन कितने
वर्षों से लिपटे हैं विषधर
शीतल होंगे चंदन कितने
कैसे सीमा लाँघ सकूंगा
पांवों में है बंधन कितने
"जोगेश्वर" अवसर तो निकला
अब कर चिंतन मंथन कितने
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1 comment:
wha sir ji,jiven ke ythart ki anubhuti ko piroya jo shabdho ki mala me kadhakar laga...u nahaya gagajal me... devisingh R siyana
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