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Wednesday, 7 October 2009

देखना ये है

ज़माना तो हुआ दुश्मन हमारा देखना ये है
तुम्हारी आँख देती क्या इशारा देखना ये है

सहे तूफ़ान भी मंझधार के तेवर बहुत देखे
सुकूं दे पायेगा कितना किनारा देखना ये है

तुम्हारी बज्म से उठ कर चले थे सूरमा कितने
पलट कर आ सके कितने दुबारा देखना ये है

हुआ है अस्त सूरज चाँद डूबा रात है काली
उगेगा कब सवेरे का सितारा देखना ये है

किया अहसान जननी जन्मभू ने हर कदम हम पर
यहाँ वो क़र्ज़ किस किस ने उतारा देखना ये है

पकड़ कर हाथ कितनों को सिखाया पाँव पर चलना
बना है कौन कब मेरा सहारा देखना ये है

अभी तो छा रहे हैं ऐरे-गेरे लोग "जोगेश्वर"
ज़माना नाम लेगा कब हमारा देखना ये है

2 comments:

Vipin Behari Goyal said...

हुआ है अस्त सूरज चाँद डूबा रात है काली
उगेगा कब सवेरे का सितारा देखना ये है
आपकी गजल वास्तव में तारीफे काबिल है

Devendra Suthar said...

भाई साहब ,
तूफां कितना भी हो हाथ उठाए रखना,
दलदल कितना भी हो हाथ जमाए रखना,
कौन कहता है छलनी में पानी नही रुकता,
बर्फ के जमने तक हाथ लगाए रखना।

आपकी कविताऐ पढ़ कर मुझे भी इसमें रूचि होने लग गई है .