ज़माना तो हुआ दुश्मन हमारा देखना ये है
तुम्हारी आँख देती क्या इशारा देखना ये है
सहे तूफ़ान भी मंझधार के तेवर बहुत देखे
सुकूं दे पायेगा कितना किनारा देखना ये है
तुम्हारी बज्म से उठ कर चले थे सूरमा कितने
पलट कर आ सके कितने दुबारा देखना ये है
हुआ है अस्त सूरज चाँद डूबा रात है काली
उगेगा कब सवेरे का सितारा देखना ये है
किया अहसान जननी जन्मभू ने हर कदम हम पर
यहाँ वो क़र्ज़ किस किस ने उतारा देखना ये है
पकड़ कर हाथ कितनों को सिखाया पाँव पर चलना
बना है कौन कब मेरा सहारा देखना ये है
अभी तो छा रहे हैं ऐरे-गेरे लोग "जोगेश्वर"
ज़माना नाम लेगा कब हमारा देखना ये है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
हुआ है अस्त सूरज चाँद डूबा रात है काली
उगेगा कब सवेरे का सितारा देखना ये है
आपकी गजल वास्तव में तारीफे काबिल है
भाई साहब ,
तूफां कितना भी हो हाथ उठाए रखना,
दलदल कितना भी हो हाथ जमाए रखना,
कौन कहता है छलनी में पानी नही रुकता,
बर्फ के जमने तक हाथ लगाए रखना।
आपकी कविताऐ पढ़ कर मुझे भी इसमें रूचि होने लग गई है .
Post a Comment