कब सोचा था इतना सब कुछ कर जायेगी
गाय विदेशी अक्ल हमारी चर जायेगी
उम्मीदें नाकाम तमन्ना मर जायेगी
इसकी जिम्मेदारी किसके सर जायेगी
चट्टानी लहरें हद पार गुज़र जायेगी
कश्ती मेरी फ़िर भी पार उतर जायेगी
यूँ तो महफ़िल में हर ओर नज़र जायेगी
उनको देखा तो फ़िर वहीं ठहर जायेगी
उम्मीदें उड़ जायेंगी काफूर सरीखी
पारे-सी आशाएं बिखर बिखर जायेगी
सुबह छुपा कर रख देता हूँ अखबारों को
मेरी बेटी पढ़ लेगी तो डर जायेगी
"जोगेश्वर" का द्वार किसी दिन बंद मिला तो
बेचारी तन्हाई किसके घर जायेगी
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2 comments:
ek baar phir se dil jitne mein kamyaab jogeshwar ji....Har sher lajbaab
आपके इस हुनर का तो पता भी न था.
अच्छे शेर हैं और ग़ज़ल मुकम्मल है पहले शेर में जो राजनैतिक प्रतिबद्धता है वह ग़ज़ल के बाकी शेर से अलग मूड की है.
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