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Saturday, 26 December 2009

क्या क्या करना पड़ता है

क्या क्या करना पड़ता है इक फ़र्ज़ निभाने की खातिर 
काँटों को सहना होगा कुछ फूल सजाने की खातिर 


ऊंची सी दीवार खींच दो बंटवारा करने वालों 
पतली गली छोड़ कर रखना आने जाने की खातिर 

दाने दाने पर दाता ने नाम लिखा है फिर भी क्यों 
दुनिया भर में जंग छिड़ी है दाने दाने की खातिर 

इक मंदिर की चौखट पर तुम घी का दीप जला आये 
खून जलाया मैंने घर घर दीप जलाने की खातिर 

पांवों में चक्कर है मेरे या ग्रह-गोचर गड़बड़ है 
सारी दुनिया घूम चुका हूँ एक ठिकाने की खातिर 

समझाया ललचाया मुझको धमकाया उलझाया भी 
कितने तीर चलाये उसने एक निशाने की खातिर 

"जोगेश्वर" को छोड़ दिया है सबने कह कर दीवाना 
तुम क्यों चिंतित उत्कंठित हो उस दीवाने की खातिर 

3 comments:

Udan Tashtari said...

ऊंची सी दीवार खींच दो बंटवारा करने वालों
पतली गली छोड़ कर रखना आने जाने की खातिर

-बेहतरीन!!

वाणी गीत said...

क्या क्या करना पड़ता है एक फ़र्ज़ निभाने की खातिर ....
दुनिया भर में जंग छिड़ी है दाने की खातिर जबकि दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम ..
सुन्दर प्रस्तुति ...!!

daanish said...

इक मंदिर की चौखट पर तुम
घी का दीप जला आये
खून जलाया मैंने घर घर दीप जलाने की खातिर

समझाया ललचाया मुझको धमकाया उलझाया भी कितने तीर चलाये उसने एक निशाने की खातिर

"जोगेश्वर" को छोड़ दिया है सबने कह कर दीवाना तुम क्यों चिंतित उत्कंठित हो उस दीवाने कीखातिर

ऐसे नायाब अश`आर के हवाले से
दिल के उम्दा और मेआरी खयालात
का खूबसूरत इज़हार करने वाले शाईर को
मुफ़लिस का पुर-ख़ुलूस आदाब,,,नमस्कार,,,सलाम
अभिवादन .