कभी तोड़ा कभी छोड़ा कभी छेड़ा बहाने से
हमारा दिल कभी हटता नहीं उनके निशाने से
इसी उम्मीद पर देता रहा हूँ हर परीक्षा मैं
कभी तो बाज आयेगा मुझे तू आजमाने से
खुशी के साथ सह लूंगा सितमगर मैं सितम तेरे
अगर आनंद मिलता हो तुझे मुझको सताने से
कभी उठना कभी गिरना कभी गिर कर सम्भलना भी
बहुत अनुभव बटोरे हैं ज़िंदगी के खजाने से
नदी को रोकिये मत पहुँचने दीजे समंदर तक
मिलेंगे कीमती मोती मुहब्बत के मुहाने से
भरम फैले अगर तो कीजिये क्या रोकिये कैसे
कभी तेरी हकीकत से कभी मेरे फ़साने से
कहोगे क्या कि "जोगेश्वर" यहाँ पर किसलिए आया
मिलेगी लाश गर उसकी कभी तेरे ठिकाने से
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2 comments:
वाह क्या बात है , बेहतरीन लगी रचना बधाई स्वीकार्य करें ।
कभी तोड़ा कभी छोड़ा कभी छेड़ा बहाने से
हमारा दिल कभी हटता नहीं उनके निशाने से
वाह वाह, जोगेश्वर जी मत्ले के साथ आपने जो समां बांधा उसका नशा मकते तब कायम रहा
एक मुकम्मल और कामयाब गजल के लिए बधाई
- वीनस
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