अवतारों के उपदेशों का सब ग्रंथों का सार यही है
ढाई आखर पढ़ ले बन्दे कबीरा तूने खूब कही है
सागर सूखा और हिमालय डूब गया गहराई में
कैसे समझाऊँ मैं यारों कैसी उल्टी धार बही है
धरती डोली अम्बर कांपा तूफां चारों ओर मचा है
जब भी कोई दिल टूटा है जब दिल की दीवार ढही है
धन-दौलत और महल-अटारी कम होंगे पर चैन बहुत है
जिसको हार समझते हैं सब सच पूछो तो जीत वही है
"जोगेश्वर" घबराना छोडो और भरोसा रखो हमेशा
वक़्त बताएगा दुनिया को कौन गलत है कौन सही है
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3 comments:
बहुत सार्थक रचना!
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
आदरजोग जोगेश्वर जी
जय राजस्थान!
जय राजस्थानी !!
आप री रचना 'अवतारोँ के उपदेश का' पढी अर दाय आई ।बधाई!
*आप लारलै दिनां हनुमानगढ़ आया जणां आप रै सनमान हुई काव्यगोष्ठी मे भी आप जोरदार ग़ज़लां पढ़ी।म्हारो कैवण रो मतलब ओ कै आप राजनीति जेड़ै काम मेँ अळूझिया थका भी सांतरो सिरजण करो। *आप मायड़ भाषा राजस्थानी मेँ भी मोकळो लिख्यो है पण इन ब्लाग माथै कमती क्यूं?आप तो मायड़ भाषा नै 8 वीँ अनुसूची मेँ जोड़ावण री खेचळ भी कर रैया हो! राजस्थानी भाषा राजमानता आंदोलन रा आप आगीवाण हो।आप माथै रास्थान्यां नै गुमान है। आपणी राजस्थानी भाषा मेँ भी आवण द्यो कीँ रचनावां।
*भळै हनुमानगढ़ पधारो भळै जाजम बिछावां!
*म्हारै ब्लागड़ै माथै ई पधारो!
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"जोगेश्वर" घबराना छोडो और भरोसा रखो हमेशा
वक़्त बताएगा दुनिया को कौन गलत है कौन सही है
केवल एक शब्द - उम्दा
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