कभी देखे न ऐसा दौर तू भी
हमारी बात पर कर गौर तू भी
अगर तू चाहता है पैर फैले
बना दे और लम्बी सौर तू भी
नहीं मिलना मुझे कोई ठिकाना
न पायेगा कहीं भी ठौर तू भी
बदल दी ज़िंदगी मेरी सही है
बदल अपना तरीका तौर तू भी
मुझे भी आसमां की दे बुलंदी
बने सबका उधर सिरमौर तू भी
यही संयोग मैं हर बार चाहूँ
तुम्हारा ज़िक्र आये और तू भी
हमारी मौत "जोगेश्वर" अगर हो
हज़ारों लोग आयें और तू भी
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8 comments:
बदल दी ज़िंदगी मेरी सही है
बदल अपना तरीका तौर तू भी
मुझे भी आसमान की दे बुलंदी
बने सबका उधर सिरमौर तू भी
यही संयोग मैं हर बार चाहूँ
तुम्हारा ज़िक्र आये और तू भी
काफिया प्रयोग आप जैसे उस्ताद के बस की ही बात है
हर गजल से इतना कुछ सीखने को मिल रहा है ही मन गदगद है
namaste joseshwerji
aapse yahan aise apratyashit mulakat hogi socha na tha.kaise hain aap? bahut khoobsurat gazal hai aapki.vishesh jo sher venusji ne quat kiye hain mujhe bhi bahut pasand aaye.mere blog per gahe-b-gahe tashreef late rahiyega.shukriya mera blog join karne ke liye.
kiran sirf chand ki hi nahi. suraj ki bhi hoti hai.shayed wahi main hun.
बहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
बदल दी ज़िंदगी मेरी सही है
बदल अपना तरीका तौर तू भी
bahut khoob .....!!
बढ़िया लिखा आपने....."
यही संयोग मैं हर बार चाहूँ
तुम्हारा ज़िक्र आये और तू भी
क्या नाज़ुक शेर है।
ग़ज़ल का जी रहा ये दौर तू भी,
इसी से पायेगा इक ठौर तू भी।
बधाई।
यही संयोग मैं हर बार चाहूँ
तुम्हारा ज़िक्र आये और तू भी
हमारी मौत "जोगेश्वर" अगर हो
हज़ारों लोग आयें और तू भी
:) shaandaaaaaaaarrrrrrrrrrrrrrrrrrr.....
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