हम तीनों के पास कुछ गिनी-चुनी हल्दी की गांठें थी जिनके बलबूते हम अपनी अपनी परचून की दुकानें चला रहे थे. ४-५ वर्ष पूर्व हम तीनों ने मिलकर एक ग़ज़ल संग्रह छपवाने का विचार किया क्यों कि हम तीनों की कुल ग़ज़लें मिला कर मुश्किल से एक संग्रह के लायक सामग्री बन पा रही थी. लेकिन हम तीनों में एक और समानता है आलस्य जिसके कारण वह कार्य लंबित होता गया. इसी दौरान मेरी लोटरी निकल गयी और मेरे अकेले के पास इतनी ग़ज़लें हो गयी कि एक संग्रह प्रकाशित हो सके. मैं अपने मित्रों को अकेला छोड़ कर आगे निकल गया. वह अपराधबोध मुझे आज तक सालता रहा.
पिछले सप्ताह परमानंदजी ने मुझे एक मिसरा दे कर कहा अपन इस पर ग़ज़ल कहने का प्रयास करते हैं. तीन-चार दिनों में हम दोनों की ग़ज़लें तैयार हो गयी. तभी मैंने कहा अचलेश्वरजी को भी शामिल किया जा सके तो मज़ा आ जाएगा और अपनी त्रिवेणी संगम की मनोकामना पूरी हो जायेगी. तीन दिन से मैं अचलेश्वरजी से "आनंद" प्राप्त करने का प्रयास और प्रतीक्षा कर रहा था जो आज जा कर पूरी हुयी.
मिसरा इस प्रकार है : "ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए"
मिसरा किसका है ये हमें पता नहीं. किसीका है भी या नहीं यह भी हम नहीं जानते. मेरे पास दो अच्छे जानकारों के मोबाईल नंबर थे. एक श्री तिलक राज कपूर और दूसरे श्री सतपाल भाटिया. दोनों से पूछ लिया पर वे भी नहीं बता पाए. नेट पर खोजा तो बशीर बद्र साहब का एक शेर मिला
"आख़री हिचकी तेरे शानों पे आये
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ"
हमने अपनी खोज को यहीं विराम दे दिया यह मान कर कि यह मिसरा भाई परमानंदजी के दिमाग की ही उपज है. फिर भी हमारे मारवाड़ी व्यापारियों की भाषा में कहूं तो "भूल-चूक, लेनी-देनी"
इस छोटी सी भूमिका के बाद पेश है तीनों ग़ज़लें.
स्वाभाविक रूप से पहले मैं:
दर्द गाना और पीड़ा गुनगुनाना चाहिए
ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए
प्यार है तुझसे मुझे यह कह दिया काफी नहीं
प्यार है तो आँख से भी छलछलाना चाहिए
खोल कर आँखें उसे मत ढूंढिए चारों तरफ
यार के दीदार को बस सर झुकाना चाहिए
कौन चिड़िया पेड़ कैसा और जंगल कौन सा
आँख चिड़िया की दिखे ऐसा निशाना चाहिए
एक छप्पर गाँव के बरगद तले मैं डाल दूं
उम्र के पिछले पहर कोई ठिकाना चाहिए
धूप मेरे साथ में है दूर तक बारिश नहीं
गर नहाना है पसीने में नहाना चाहिए
उम्र भर बैठे रहे खामोश "जोगेश्वर" वहाँ
बात की शुरुआत का कुछ तो बहाना चाहिए
अब अचलेश्वर "आनंद"
गम हरिक बातिन खुशी हर जाहिराना चाहिए
ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए
किसलिए मायूस गुमसुम किसलिए खामोश हैं
इस चमन की बुलबुलों को चहचहाना चाहिए
हक लिखा रज्जाक ने जिस रिज्क पर इंसान का
नेकनामी से मिले वो आब-ओ-दाना चाहिए
आकिलों का जोर बस इल्म-ओ-हुनर तक रह गया
शायरी में दिल की तबियत आशिकाना चाहिए
जिसको सुन कर खुशबू-ए-गुल खिल उठे ए हमनशीं
मन मिला कर महक में यूं गुनगुनाना चाहिए
जिसकी हर दिल पर हुकूमत ऐ दिल-ए-नादान सुन
अपनी हर धड़कन से उसमे दिल लगाना चाहिए
"आनंद" के अशआर-ओ-आदाब उन सब के लिए
मर्द-ए-कामिल हर क़दम पर मुस्कुराना चाहिए
और अंत में परमानंद भट्ट
मीर ग़ालिब-ओ-ज़फर का वो ज़माना चाहिए
ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए
ख्वाब में भी क्यों खुदा से मांगिये ऊंचा मकान
चंद तिनकों का सही पर आशियाना चाहिए
उम्र भर सुनते रहे हम ज़िंदगी की झिड़कियां
थक चुके सुन-सुन हमें अब सर उठाना चाहिए
वो हमारी दास्ताँ जब भी सुनेगा गौर से
अश्क उसकी आँख में तब झिलमिलाना चाहिए
दूरियों नज़दीकियों के मायने कुछ भी नहीं
जब कभी एकांत हो वो याद आना चाहिए
उतर कर आकाश से कहने लगी किरणें हमें
किसलिए अब दीप घर में टिमटिमाना चाहिए
सहज में चर्चा करे जो वेद और वेदान्त की
फिर कबीरा-सा हमें फक्कड़ दिवाना चाहिए
जिस्म का आनंद यारों कुछ पलों का खेल है
रूह का आनंद "परमानंद" पाना चाहिए
अब आप समझ गए होंगे मैंने ग़ज़लों को इसी क्रम में क्यों प्रस्तुत किया ? आप लोग भी मेरी राय से अवश्य सहमत होंगे. मेरे दोनों मित्रों की ग़ज़लें मुझसे बेहतर हैं.
इस त्रिवेणी संगम पर आप की राय की प्रतीक्षा रहेगी.