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Tuesday, 1 September 2009

फिर कोई इल्जाम लगा दीवाने पर

फिर कोई इल्जाम लगा दीवाने पर
फिर है दिल बेचारा आज निशाने पर


मुझे पता है शेर मेमने का किस्सा
हंसी आ रही उनके लचर बहाने पर

उनका गुस्सा हद से पार हुआ यारों
शायद तीर लगा है ठीक ठिकाने पर

कह सकता हूँ रोज़ कहानी नई नई
रोक लगी है लेकिन राज़ बताने पर

सर धुन कर पछतायेंगे वो लोग सभी
जिन्हें खुशी मिलती है मुझे सताने पर

समझदारियां रह जाती हैं धरी धरी
इश्क-मुश्क छुपते हैं कहाँ छुपाने पर

"जोगेश्वर" तो सचमुच जान लड़ा बैठा
ध्यान सयानों का था रस्म निभाने पर

3 comments:

वीनस केसरी said...

वाह मतला से मक्ता तक शानदार गजल कही आपने

उनका गुस्सा हद से पार हुआ यारों
शायद तीर लगा है ठीक ठिकाने पर

कह सकता हूँ रोज़ कहानी नई नई
रोक लगी है लेकिन राज़ बताने पर

मक्ता और ये शेर ख़ास पसंद आया
बहुत बहुत बधाइयाँ
वीनस केसरी

Udan Tashtari said...

क्या बात है!!

Unknown said...

Very touchy.......

Liked your views very much....