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Wednesday, 9 September 2009

भूल करुँ तो मारे तू

भूल करूं तो मारे तू
फिर वापस पुचकारे तू

भूल करूं मैं रोज नई
कितनी भूल सुधारे तू

तू मंझधार किनारों में
धारा बीच किनारे तू

पद-प्रतिष्ठा धन यौवन
सारे नशे उतारे तू

समझ नहीं पाता हूँ मैं
करता खूब इशारे तू

चपत लगा कर गालों पर
लाली खूब निखारे तू

दिखलाये "जोगेश्वर" को
दिन में रोज सितारे तू

2 comments:

Vipin Behari Goyal said...

भाई वाह जोगेश्वर जी आप इतने अच्छे कवि भी हैं यह नहीं पता था .बहुत बहुत साधुवाद .

Udan Tashtari said...

वाह वाह!! बेहतरीन!!