कदम से कदम जो मिला कर चले
वही चोट दिल पर लगा कर चले
न लौटे न देखा पलट कर कभी
कसम आपकी जो उठा कर चले
सज़ा दे रहा यूँ ज़माना हमें
की जैसे फ़क़त हम खता कर चले
उठायी मिलाई झुकाई नज़र
हमें इस अदा पर फना कर चले
न सोचा न समझा मगर हम उसे
नज़र में सभी की खुदा कर चले
तेरी बज्म से यूँ उठे झूम कर
लगा हम वहाँ से नशा कर चले
नहीं चाहिए वो तरक्की हमें
अगर आदमीयत मिटा कर चले
खुदा भी मिले हो विसाले-सनम
हस्ती अगर हम मिटा कर चले
उन्हें चैन कैसे मिलेगा भला
किसीका अगर दिल दुखा कर चले
न "जोगेश्वरों" की जरूरत रही
यहाँ से उन्हें सब विदा कर चले
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1 comment:
jogeshwarji apki gajle vakai dil ki gahri samvednao ko sparsh karti hui chintan ko ek naya aayam deti hai.badhai
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