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Monday 14 June, 2010

त्रिवेणी संगम

जालोर में मेरे दो साहित्यिक मित्र हैं. एक अचलेश्वर "आनंद" दूसरे परमानंद भट्ट. एक "आनंद" तो दूसरा "परमानंद" ! अब समझे आप मेरे सदा आनंदित रहने का रहस्य ? हम तीनों ग़ज़लों के रसिया. ग़ज़ल कहना, पढ़ना, सुनना और सुनाना हम तीनों को बहुत अच्छा लगता है. और एक रहस्य की बात बताऊँ ? ग़ज़ल के कथ्य और विषयवस्तु के स्तर पर हम तीनों लगभग एक ही धरातल पर खड़े नज़र आते हैं.
हम तीनों के पास कुछ गिनी-चुनी हल्दी की गांठें थी जिनके बलबूते हम अपनी अपनी परचून की दुकानें चला रहे थे. ४-५ वर्ष पूर्व हम तीनों ने मिलकर एक ग़ज़ल संग्रह छपवाने का विचार किया क्यों कि हम तीनों की कुल ग़ज़लें मिला कर मुश्किल से एक संग्रह के लायक सामग्री बन पा रही थी. लेकिन हम तीनों में एक और समानता है आलस्य जिसके कारण वह कार्य लंबित होता गया. इसी दौरान मेरी लोटरी निकल गयी और मेरे अकेले के पास इतनी ग़ज़लें हो गयी कि एक संग्रह प्रकाशित हो सके. मैं अपने मित्रों को अकेला छोड़ कर आगे निकल गया. वह अपराधबोध मुझे आज तक सालता रहा.
पिछले सप्ताह परमानंदजी ने मुझे एक मिसरा दे कर कहा अपन इस पर ग़ज़ल कहने का प्रयास करते हैं. तीन-चार दिनों में हम दोनों की ग़ज़लें तैयार हो गयी. तभी मैंने कहा अचलेश्वरजी को भी शामिल किया जा सके तो मज़ा आ जाएगा और अपनी त्रिवेणी संगम की मनोकामना पूरी हो जायेगी. तीन दिन से मैं अचलेश्वरजी से "आनंद" प्राप्त करने का प्रयास और प्रतीक्षा कर रहा था जो आज जा कर पूरी हुयी.
मिसरा इस प्रकार है : "ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए"
मिसरा किसका है ये हमें पता नहीं. किसीका है भी या नहीं यह भी हम नहीं जानते. मेरे पास दो अच्छे जानकारों के मोबाईल नंबर थे.  एक श्री तिलक राज कपूर और दूसरे श्री सतपाल भाटिया. दोनों से पूछ लिया पर वे भी नहीं बता पाए. नेट पर खोजा तो बशीर बद्र साहब का एक शेर मिला
"आख़री हिचकी तेरे शानों पे आये 
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ"
हमने अपनी खोज को यहीं विराम दे दिया यह मान कर कि यह मिसरा भाई परमानंदजी के दिमाग की ही उपज है. फिर भी हमारे मारवाड़ी व्यापारियों की भाषा में कहूं तो "भूल-चूक, लेनी-देनी"
इस छोटी सी भूमिका के बाद पेश है तीनों ग़ज़लें.
स्वाभाविक रूप से पहले मैं:


दर्द गाना और पीड़ा गुनगुनाना चाहिए 
ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए 

प्यार है तुझसे मुझे यह कह दिया काफी नहीं 
प्यार है तो आँख से भी छलछलाना चाहिए 


खोल कर आँखें उसे मत ढूंढिए चारों तरफ
यार के दीदार को बस सर झुकाना चाहिए 


कौन चिड़िया पेड़ कैसा और जंगल कौन सा
आँख चिड़िया की दिखे ऐसा निशाना चाहिए 


एक छप्पर गाँव के बरगद तले मैं डाल दूं 
उम्र के पिछले पहर कोई ठिकाना चाहिए 


धूप मेरे साथ में है दूर तक बारिश नहीं 
गर नहाना है पसीने में नहाना चाहिए 


उम्र भर बैठे रहे खामोश "जोगेश्वर" वहाँ 
बात की शुरुआत का कुछ तो बहाना चाहिए 

अब अचलेश्वर "आनंद"

गम हरिक बातिन खुशी हर जाहिराना चाहिए 
ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए 


किसलिए मायूस गुमसुम किसलिए खामोश हैं 
इस चमन की बुलबुलों को चहचहाना चाहिए 


हक लिखा रज्जाक ने जिस रिज्क पर इंसान का 
नेकनामी से मिले वो आब-ओ-दाना चाहिए 


आकिलों का जोर बस इल्म-ओ-हुनर तक रह गया 
शायरी में दिल की तबियत आशिकाना चाहिए 


जिसको सुन कर खुशबू-ए-गुल खिल उठे ए हमनशीं
मन मिला कर महक में यूं गुनगुनाना चाहिए 


जिसकी हर दिल पर हुकूमत ऐ दिल-ए-नादान सुन 
अपनी हर धड़कन से उसमे दिल लगाना चाहिए 


"आनंद" के अशआर-ओ-आदाब उन सब के लिए
मर्द-ए-कामिल हर क़दम पर मुस्कुराना चाहिए


और अंत में परमानंद भट्ट 

मीर ग़ालिब-ओ-ज़फर का वो ज़माना चाहिए 
ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए 

ख्वाब में भी क्यों खुदा से मांगिये ऊंचा मकान
चंद तिनकों का सही पर आशियाना चाहिए 


उम्र भर सुनते रहे हम ज़िंदगी की झिड़कियां
थक चुके सुन-सुन हमें अब सर उठाना चाहिए 


वो हमारी दास्ताँ जब भी सुनेगा गौर से 
अश्क उसकी आँख में तब झिलमिलाना चाहिए 


दूरियों नज़दीकियों के मायने कुछ भी नहीं 
जब कभी एकांत हो वो याद आना चाहिए 


उतर कर आकाश से कहने लगी किरणें हमें 
किसलिए अब दीप घर में टिमटिमाना चाहिए 


सहज में चर्चा करे जो वेद और वेदान्त की 
फिर कबीरा-सा हमें फक्कड़ दिवाना चाहिए 


जिस्म का आनंद यारों कुछ पलों का खेल है 
रूह का आनंद "परमानंद" पाना चाहिए 


अब आप समझ गए होंगे मैंने ग़ज़लों को इसी क्रम में क्यों प्रस्तुत किया ? आप लोग भी मेरी राय से अवश्य सहमत होंगे. मेरे दोनों मित्रों की ग़ज़लें मुझसे बेहतर हैं.
इस त्रिवेणी संगम पर आप की राय  की प्रतीक्षा रहेगी. 
  

10 comments:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

त्रिवेणी संगम में नहाना भाया।

जोगेश्वरजी
आप सहित अचलेश्वर "आनंद"जी और परमानंद भट्टजी के साथ
इस तरही निशस्त में शामिल होने के बाद
मन कहने लगा…
सुख़न की संगम - त्रिवेणी मे नहाना चाहिए
इन अदीबों के लिखे को गुनगुनाना चाहिए


किसी के भी शे'र पर कुछ न कह कर
आनंद और परमानंद में डूबने का जोग ईश्वर को पाने के लिए धारण करते हैं आज !

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आप तीनो के अंदाज एक हैं... आप तीनो का शुक्रिया!

अब मैं भी इक शेर कह दूँ.
आनंद और परमानंद में डूब जाना चाहिए
बारिश में जोगेश्वर आपको नहाना चाहिए

... वाह वाह !!

यहाँ अच्छा लगा आज, ये सिलसिला कायम रहे.

तिलक राज कपूर said...

आपने तो संक्षिप्‍त तरही कर डाली चुपके-चुपके। मेरी दुआ है कि यह त्रिवेणी निरंतर ग़ज़ल प्रवाहित करती रहे और ग़ज़लों के सागर का नमक बरकरार रहे।
एक छपार गाँव के बरगद तले में टंकण त्रुटि हो गयी है सही शब्‍द छप्‍पर है और बह्र में भी लग रहा है।
अच्‍छी बात यह लगी कि उम्र के साथ जो वैचारिक परिपक्‍वता आनी चाहिये वह तीनों ग़ज़लों में मौजूद है।

नीरज गोस्वामी said...

जोगेश्वर जी आपकी इस तिकड़ी को प्रणाम...गंगा जमना सरस्वती का संगम हो गया ये तो...अहहहाहा...क्या कहें आत्मा तृप्त हो गयी आप तीनो के अशार पढ़ कर...एक आध शेर को चुनना थोडा मुश्किल काम है लेकिन फिर भी कोशिश करता हूँ...सबसे पहले आप से:
मतले में आप थोडा सा पता नहीं मुझे लगता है कुछ जल्दबाजी कर गए...पीड़ा शायद स्त्री लिंग है, क्यूँ के हम हमेशा पीड़ा के लिए हुई शब्द का इस्तेमाल करते हैं हुआ नहीं करते या कभी दूसरे से पूछते हैं तब भी कहते हैं पीड़ा तो नहीं हो रही...इस लिए पीड़ा के साथ गुनगुनाना अटपटा लग रहा है...आप विशेषज्ञों से बात कर इस बात की पहले पुष्टि करलें क्यूँ के मैं तो अल्प ज्ञानी हूँ...बाकि आप के शेर दमदार है और जो मैं अपने साथ ले जरा हूँ वो हैं:-
एक छपार गाँव के बरगद तले मैं डाल दूं
उम्र के पिछले पहर कोई ठिकाना चाहिए
(यहाँ छप्पर होना चाहिए था)

भाई अचलेश्वर जी की शायरी ने दिल मोह लिया हालाँकि उन्होंने बहुत से उर्दू लफ़्ज़ों का प्रोयोग किया है लेकिन खूब किया है...

आकिलों का जोर बस इल्म-ओ-हुनर तक रह गया
शायरी में दिल की तबियत आशिकाना चाहिए

और परमानन्द जी का क्या कहना...भाई वाह...सरलता से कहे उनके शेर सीधे दिल में उतर गए...

उम्र भर सुनते रहे हम ज़िंदगी की झिड़कियां
थक चुके सुन-सुन हमें अब सर उठाना चाहिए

आप तीनो ऐसे प्रयोग करते रहें ताकि हम पाठक इस त्रिवेणी में डुबकी लगाने आते रहें...

नीरज

वीनस केसरी said...

जोगेश्वर जी आज तो आपने चौंका दिया

एक साथ तीन तीन गजल


दर्द गाना और पीड़ा गुनगुनाना चाहिए
ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए

गम हरिक बातिन खुशी हर जाहिराना चाहिए
ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए

मीर ग़ालिब-ओ-ज़फर का वो ज़माना चाहिए
ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए

वाह वाह दिल खुश हो गया
आनंद जी और परमानंद जी से मुलाक़ात भी खूब रही

jogeshwar garg said...

"छप्पर" को सुधार दिया है. ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद.

KL said...

jalor ki dharti ke tino vir gajalkaro anand parmand aur jogesh ke triveni sangam ko sadhuvad. apki imandar koshish sacmuth inam ke layak hai. mai khud kai bar tino ki kai rachnao ka pahla shrota raha hu isliye ap ki imandari aur rachnadharmita ko attested kar sakta hu. KANHAIYALAL KHANDELWAL. editor MARWAR CHETNA.

Unknown said...

triveni nirantar bahti rahe to jyada anand rahega.

Unknown said...

teeno gazle ek se badhkar ek hain

jogeshwar garg said...

Rao Ashok Singh Opawat wrote:
दर्द गाना और पीड़ा गुनगुनाना चाहिए
ज़िंदगी अंदाज़ तेरा शायराना चाहिए ..........Humse jyada koi bechain kya hoga,Humse jyada koi betab kya hoga,Unke yadon ko baho me lekar soye hai,isse jyada pyar ka nasha kya hoga.... jai shankari !!!!