अब कहाँ मज़नूं रहे लैला नदारद हो गयी
अब मुहब्बत तो महज घर की सजावट हो गयी
बदलना सम्भव नहीं है लाख कोशिश कीजिये
उस विधाता की कलम से जो लिखावट हो गयी
बाप के साए तले महफूज़ बेटी अब नहीं
कलयुगी इस बाप में कितनी गिरावट हो गयी
देख कर मैली चदरिया अब बुरा लगता नहीं
दाग अब फैशन हुए ऐसी बुनावट हो गयी
सच कहा तो हाल मेरा हो गया ऐसा यहाँ
बन गए दुश्मन सभी सबसे अदावत हो गयी
जब कभी उंगली उठी मेरी वफ़ा पर बेवज़ह
तब लहू उबला मेरा मुझसे बगावत हो गयी
छोड़ "जोगेश्वर" कहानी तेल घी परचून की
प्यार में मनुहार तक में भी मिलावट हो गयी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
जब कभी उंगली उठी मेरी वफ़ा पर बेवज़ह
तब लहू उबला मेरा मुझसे बगावत हो गयी
बहुत खूब
वीनस केसरी
हमें भी तो देखो... :)
बेहतरीन!!
Bahut khoob jogeshwar ji ..ek aur behtareen rachna....
क्या खूब कहा है !
yehi to kalyug ki pahchan hai... kya khoob pahchana aapne sabji devisingh R siyana
Post a Comment