भूल करूं तो मारे तू
फिर वापस पुचकारे तू
भूल करूं मैं रोज नई
कितनी भूल सुधारे तू
तू मंझधार किनारों में
धारा बीच किनारे तू
पद-प्रतिष्ठा धन यौवन
सारे नशे उतारे तू
समझ नहीं पाता हूँ मैं
करता खूब इशारे तू
चपत लगा कर गालों पर
लाली खूब निखारे तू
दिखलाये "जोगेश्वर" को
दिन में रोज सितारे तू
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2 comments:
भाई वाह जोगेश्वर जी आप इतने अच्छे कवि भी हैं यह नहीं पता था .बहुत बहुत साधुवाद .
वाह वाह!! बेहतरीन!!
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