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Wednesday, 16 September 2009

ख़्वाबों की गठरी मत खोल

ख़्वाबों की गठरी मत खोल
करना है कर कुछ मत बोल

जितना शोर मचाये ढोल
भीतर उसके उतनी पोल

मैंने सीखा यही भूगोल
अम्बर चौड़ा धरती गोल

वक्त बड़ा ही नाजुक यार
खुल जाए कब किसकी पोल

याद कबीरा आए आज
ढाई आखर हैं अनमोल

मीठी गोली देना सीख
पिला नहीं तू कड़वा घोल

"जोगेश्वर" जग जैसा बन
चिकना-चुपड़ा गोल-मटोल

2 comments:

Vipin Behari Goyal said...

मीठी गोली देना सीख
पिला नहीं तू कड़वा घोल
मेरे ही दिल की बात है.अगर आप की नसीहत मानलूं तो मेरी जिन्दगी भी संवर सकती है.

Udan Tashtari said...

जितना शोर मचाये ढोल
भीतर उसके उतनी पोल

-बिल्कुल सही!!