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Wednesday 4 August, 2010

कश्ती है समंदर में

मेरी १०० वीं पोस्ट पर एक टिप्पणी आयी थी "अच्छा भजन है". इस टिप्पणी पर मुझे ख़याल आया हिंदी के अनेक भक्तकवियों ने अपने प्रभु को रिझाने के लिए "ग़ज़ल" विधा का भरपूर उपयोग किया है. ब्रह्मानंद का यह प्रसिद्द भजन तो सब की जुबान पर होगा ही :"मुझे है काम ईश्वर से जगत रूठे तो रुठन दे".

"धरी सिर पाप की मटकी, मेरे गुरुदेव ने झटकी,
वो ब्रह्मानंद ने पटकी, अगर फूटे तो फूटन दे"
 
इस कड़ी में अनेक उदाहरण गिनाये जा सकते हैं. सूफी कलाम तो सारा का सारा ग़ज़ल-मय ही है. नवीनतम उदाहरण के रूप में आस्था और संस्कार जैसे धार्मिक टीवी चेनलों में भजन गाते हुए श्री विनोदजी अग्रवाल को अक्सर देखा-सुना जा सकता है. उनके द्वारा गाये जा रहे ज्यादातर भजन ग़ज़ल ही होते हैं. इसी कड़ी में लीजिये प्रस्तुत है एक भजन-कम-ग़ज़ल :

कश्ती है समंदर में और दूर किनारा है 
तू पार उतारेगा, तुझको ही पुकारा है 

लाखों हैं पाप मेरे, कोटि अपराध मेरे 
गलती की गठरी है, भूलों का पिटारा है 

झूठे हैं सहारे सब, मक्कार फरेबी सब,
सच्चा इक नाम तेरा, सच्चा तू सहारा है 

ये सिर उन चरणों पर, वो हाथ मेरे सिर पर,
क्या खूब इनायत है, क्या खूब नजारा है 

हर पल जो बीता है "जोगेश्वर" जीता है 
बेशक है नाम मेरा, पर काम तुम्हारा है 

बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आना हुआ है. आपकी टिप्पणियों से ही पता चल पायेगा कि ग़ज़ल का यह रूप पसंद आया या नहीं ?
 

8 comments:

Gyan Darpan said...

बहुत बढ़िया भजन

daanish said...

अच्छी ग़ज़ल
और वो भी भक्ति रस में डूबी हुई
बहुत खूब !!
आपके दुआरा की गयी शोध भी प्रशंसनीय है

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

bahut badhiya spritual gazal. badhai.

kumar zahid said...

झूठे हैं सहारे सब, मक्कार फरेबी सब,
सच्चा इक नाम तेरा, सच्चा तू सहारा है

हर पल जो बीता है "जोगेश्वर" जीता है
बेशक है नाम मेरा, पर काम तुम्हारा है

क्या अंदाज है।
वैसे अहसास की गहराई से निकली हर सदा नात भी है और ग़ज़ल भी

Deepak chaubey said...

भक्ति भाव से परिपूर्ण ग़ज़ल
आभार

हरकीरत ' हीर' said...

भजन कम ग़ज़ल .....?
क्या बात है ......!!
लाखों हैं पाप मेरे, कोटि अपराध मेरे
गलती की गठरी है, भूलों का पिटारा है

कहते हैं अपनी गलतियां कबूल करने से पापों से मुक्ति मिल जाती है .....
मुझे तो रश्क होने लगा ....

झूठे हैं सहारे सब, मक्कार फरेबी सब,
सच्चा इक नाम तेरा, सच्चा तू सहारा है

हम मुरख तुम चतुर सिआणप
हम निर्गुण तू दाता ....

हर पल जो बीता है "जोगेश्वर" जीता है
बेशक है नाम मेरा, पर काम तुम्हारा है
जोगेश्वर जी आप तो तर गए ये ग़ज़ल लिख ....
अब मुझे भी कुछ करना पड़ेगा ....

jogeshwar garg said...

धन्यवाद आपा !
तगड़ा कमेन्ट मारा है अपनी ख़ास स्टाइल से !

jogeshwar garg said...

Rao Ashok Singh wrote:
"ये सिर उन चरणों पर, वो हाथ मेरे सिर पर,
क्या खूब इनायत है, क्या खूब नजारा है
.... sadagi with shradha wah .... wah ... khub kahi ..... jai shankari !!!"