पूरे तीन महीने बाद आज बिचारे ब्लॉग की सुध ली है. जबसे बैरन फेस बुक सौतन बन कर खड़ी हो गयी है तब से हमारा ब्लॉग बिचारा हो गया है. वैसे भी नेट पर बैठने के लिए ज्यादा समय तो मिलता नहीं. जो मिलता है वो भी सारा फेस बुक की भेंट चढ़ जाता है. निश्चित ही फेस बुक ज्यादा बड़ा प्लेटफोर्म है जहां ज्यादा लोगों से संपर्क और ज्यादा लोगों तक पहुँच बन सकती है. और राजनीति से जुड़े लोगों के लिए ज्यादा लोगों से जुड़ने का लोभ संवरण कर पाना ज़रा मुश्किल होता है. ज्यादा लोगों से जुड़ाव हमारे लिए नशे से कम नहीं होता है. इसलिए................... मुझको यारों माफ़ करना मैं नशे में हूँ !
खैर....... ! सबसे पहले तो इस ब्लॉग के सम्माननीय पाठकों और प्रशंसकों को दिवाली की हार्दिक शुभ कामनाएं ! और अब आनंद लीजिये एक ताज़ा ग़ज़ल का !
अमीरी में रखा क्या है
ग़रीबी में बुरा क्या है
कभी पूछो फकीरों से
फकीरी में मज़ा क्या है
तुझे भी एक दिन जाना
बचा अब रास्ता क्या है
चला चल जानिबे मंजिल
मुसाफिर सोचता क्या है
पता क्या है हवाओं को
दिए का हौसला क्या है
तुझे मिलना बहुत चाहूँ
बता तेरा पता क्या है
समझना है बहुत मुश्किल
खता क्या थी सज़ा क्या है
फिरे क्यों पूछता सब को
मुक़द्दर में लिखा क्या है
बताये कौन बन्दे को
खुदाओं की रज़ा क्या है
अहमियत खुद समझ अपनी
बिना तेरे खुदा क्या है
कभी तो सोच "जोगेश्वर"
गया क्या है बचा क्या है
6 comments:
'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ' यानी कि असत्य की ओर नहीं सत्य की ओर, अंधकार नहीं प्रकाश की ओर, मृत्यु नहीं अमृतत्व की ओर बढ़ो ।
दीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं ! आपका - अशोक बजाज रायपुर
ग्राम-चौपाल में आपका स्वागत है
http://www.ashokbajaj.com/2010/11/blog-post_06.html
क्या बात है, राजनीति में रहते हुए ये सूफि़याना सोच, काश सभी राजनीतिज्ञ ऐसे ही सोचने लगें। इंतज़ार करना पड़ा लेकिन पूरी तरह आनंद आया।
धन्यवाद कपूर साहब ! सूफियाना अंदाज़ आप से ही सीख रहा हूँ.
Very very interesting and really excellent ghazal..... I congratulate you, and wish your ghazal!
अहमियत खुद समझ अपनी
बिना तेरे खुदा क्या है
कभी तो सोच "जोगेश्वर"
गया क्या है बचा क्या है
महोदय
इस दुनिया से उस दुनिया तक
लोग मिलेंगे बहुत मिलेंगे
पर जिसमें रम जागा मन ए
ऐसे रिश्ते कहां मिलेंगे ?
दिवाली की हार्दिक शुभ कामनाएं
धन्यवाद वर्षाजी एवं कुमार जाहिद साहब !
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