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Monday, 10 May 2010

किसी को बना दे किसी को मिटा दे

किसी को बना दे किसी को मिटा दे 
खुदा है कि क्या है मुझे तू बता दे 

अगर है मुहब्बत किसी दिन जता दे 
कभी देख मुझको ज़रा मुस्कुरा दे 

मिटा दो रिवाजों को रस्मों को यारों 
मुहब्बत करे और फिर भी दगा दे 

दिला दे हमें याद फिर वो ज़माना 
किसी दिन तराना वही फिर सुना दे 

चलो प्यार की इन्तेहा यूं दिखायें 
 रुला दूं तुझे मैं मुझे तू रुला दे 

तरीका तुझे क्यों बताया किसीने 
किसी के गुनाहों की मुझको सजा दे 

फ़रिश्ते रहें क्यों भला बीच में अब 
मुझे तू बुला ले गले से लगा दे 

खुदा से मिलन चाहता है अगर तू 
खुदी "जोगेश्वर" अपनी पहले मिटा दे 

3 comments:

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!! आनन्द आया.

Anonymous said...

bahut achchi rachana ...aapse bahut kuch seekhne ko mil raha hai !!!

नीरज गोस्वामी said...

किसी को बना दे किसी को मिटा दे
खुदा है कि क्या है मुझे तू बता दे

फ़रिश्ते रहें क्यों भला बीच में अब
मुझे तू बुला ले गले से लगा दे

वाह गर्ग साहब वाह...बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने...मतले से मकते तक अच्छे शेर कह गए हैं आप...आपके मतले से मिलता जुलता शेर मैंने अपनी एक मुम्बैया ज़बान की ग़ज़ल में कहा था...

जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू

पूरी ग़ज़ल पढने के लिए यहाँ चटका लगायें:-

http://ngoswami.blogspot.com/2009/11/blog-post_16.html