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Monday, 31 May 2010

जब कभी की नहीं खता मैंने

जब कभी की नहीं खता मैंने
खूब पायी तभी सज़ा मैंने

आपने सुन लिया वही सब कुछ
जो कभी भी नहीं कहा मैंने

क्या शिकायत करुँ ज़माने की
आप भी हैं खफा सुना मैंने

आप भी तो कभी सुनें मेरी
आप को उम्र भर सुना मैंने

आ गया मैं तभी निशाने पर
आप को ज़िंदगी कहा मैंने

आपको देख लूं कि सुन ही लूं
यूं करी रोज इब्तिदा मैंने

राज़ को राज़ तुम रखोगे क्या
आपको तो दिया बता मैंने

कुछ न पक्का बता सका कोई
खूब पूछा तेरा पता मैंने

ग़ज़ल "जोगेश्वर" न बनी यूं ही
जो कि भुगता सहा लिखा मैंने

5 comments:

दिलीप said...

waah gazal to badhiya bani..bhale bhugta hi likha ho...

वीनस केसरी said...

पहले ये गजल पढ़ी हुयी लगी फिर याद आ गया कि ....:)

Ra said...

जोरदार लिखा है ,,,मोहदय !!!

नीरज गोस्वामी said...

गर्ग साहब बहुत खूब ग़ज़ल कही है...सारे शेर बहुत अच्छे कहे हैं...अगर मतले को यूँ कहें तो कैसा रहे?

जब कभी की नहीं खता मैंने
खूब पायी तभी सजा मैंने

नीरज

jogeshwar garg said...

नीरजजी आपका सुझाव अच्छा लगा इसलिए तुरंत मान लिया. ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहिये.