जब कभी की नहीं खता मैंने
खूब पायी तभी सज़ा मैंने
आपने सुन लिया वही सब कुछ
जो कभी भी नहीं कहा मैंने
क्या शिकायत करुँ ज़माने की
आप भी हैं खफा सुना मैंने
आप भी तो कभी सुनें मेरी
आप को उम्र भर सुना मैंने
आ गया मैं तभी निशाने पर
आप को ज़िंदगी कहा मैंने
आपको देख लूं कि सुन ही लूं
यूं करी रोज इब्तिदा मैंने
राज़ को राज़ तुम रखोगे क्या
आपको तो दिया बता मैंने
कुछ न पक्का बता सका कोई
खूब पूछा तेरा पता मैंने
ग़ज़ल "जोगेश्वर" न बनी यूं ही
जो कि भुगता सहा लिखा मैंने
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5 comments:
waah gazal to badhiya bani..bhale bhugta hi likha ho...
पहले ये गजल पढ़ी हुयी लगी फिर याद आ गया कि ....:)
जोरदार लिखा है ,,,मोहदय !!!
गर्ग साहब बहुत खूब ग़ज़ल कही है...सारे शेर बहुत अच्छे कहे हैं...अगर मतले को यूँ कहें तो कैसा रहे?
जब कभी की नहीं खता मैंने
खूब पायी तभी सजा मैंने
नीरज
नीरजजी आपका सुझाव अच्छा लगा इसलिए तुरंत मान लिया. ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहिये.
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