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Sunday, 16 May 2010

कहूं शाम इसको कहूं या सवेरा

कहूं शाम इसको कहूं या सवेरा 
कभी है उजाला कभी फिर अन्धेरा 


कभी है खुशी तो कभी गम घनेरा 
अरे क्या हुआ क्या हुआ हाल मेरा 


मुझे पूछते सब बता ए मुसाफिर 
किधर है ठिकाना कहाँ है बसेरा 


मुझे मार कर कह दिया है शहादत 
मेरी राख को फिर हवा में बिखेरा 


बड़ा सख्त-दिल है ये ज़ालिम ज़माना 
किसी का नहीं है न तेरा न मेरा 


मुझे नींद में भी कलम गर थमा दी 
तेरा नाम तेरा ही चेहरा उकेरा 


मेरी ख्वाहिशें "जोगेश्वर" सिर्फ इतनी 
बनूँ सांप मैं गर बने तू सपेरा 

5 comments:

दिलीप said...

waah bahut khoob sir...

Sandesh Dixit said...

AApse kafi sikhne ko mil raha hai ....aapne jis saralta ke sath gazal ki barikiyo ko kadam dar kadam blog par samjhaya..wo mujh jaise sanichari ko bhi samajh aa gaya ......dhanywad !!!

AAPNI BHASHA - AAPNI BAAT said...

अरे वाह! जोगेश्वर जी!
आज आपसूं जबरो मेळ व्हियो. आप तो मायड़ भाषा मानता आन्दोलन रा जुझारू नेता हो. म्है आपरा कई बार भाषण सुणिया है राजस्थानी में. राजस्थानी रा भोत ब्लॉग आया है इन्टरनेट पर. कड़े फुर्सत में म्हारा ब्लॉग भी देख्ज्यो सा! आप भी मायड़ भाषा में ब्लॉग लिखो तो घणो चोखो लागसी.
म्हारा ब्लॉग
आपणी भाषा आपणी बात
इक्कीस
कागज काले
आपरो
डॉ. सत्यनारायण सोनी
प्राध्यापक (हिंदी)
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय परलीका
जिला- हनुमानगढ़.
कानाबाती- 9460102521

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

मुझे नींद में भी कलम गर थमा दी
तेरा नाम तेरा ही चेहरा उकेरा
वाह ! प्यार अक़ीदत बंदगी हो , तो ऐसी हो !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...
This comment has been removed by the author.