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Thursday, 27 May 2010

मिले मज़बूत को मज़बूतियाँ हर पल सहारे भी

मिले मज़बूत को मज़बूतियाँ हर पल सहारे भी 
उन्हें हासिल हमेशा ही निगाहें भी नज़ारे भी 


किसे दें दोष गर ये ज़िंदगी सैलाब बन जाए 
कभी मदहोश धाराएं कभी बेखुद किनारे भी 


न जाने ज़िंदगी क्या क्या दिखायेगी अभी आगे 
कभी कुहरा कभी पतझड़ कभी रिमझिम फुहारें भी 


तुम्हारी बेरुखी कोई किसी दिन देख ले आकर 
उसे विश्वास क्या होगा कभी हम थे तुम्हारे भी 


बुरा है हाल गर मेरा तुम्हारा भी कहाँ अच्छा 
इधर शोले बरसते हैं उधर पग पग शरारे भी 


तुम्हारे द्वार से मैं लौट कर जाना अगर चाहूँ 
न जाने कौन दे आवाज मुझको फिर पुकारे भी 


कहेगा कौन "जोगेश्वर" तुम्हें सीधी सरल बातें 
घुमा कर लोग बोलेंगे करेंगे कुछ इशारे भी 

6 comments:

अर्चना तिवारी said...

मिले मज़बूत को मज़बूतियाँ हर पल सहारे भी
उन्हें हासिल हमेशा ही निगाहें भी नज़ारे भी

सुंदर ग़ज़ल..

Pushpendra Singh "Pushp" said...

jogeshwar ji
bahut hi umda sher.........
बुरा है हाल गर मेरा तुम्हारा भी कहाँ अच्छा
इधर शोले बरसते हैं उधर पग पग शरारे भी
lajabab
abhar..............

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

न जाने ज़िंदगी क्या क्या दिखायेगी अभी आगे
कभी कुहरा कभी पतझड़ कभी रिमझिम फुहारें भी
माशाअल्लाह !
बड़ा प्यारा शे'र कहा है , बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

अजय कुमार झा said...

जोगेश्वर जी ,
खूबसूरत पंक्तियां हैं । एक बात का निवारण करिए

मिले मजबूत को मजबूतियां हर पल सहारे भी

या फ़िर

मिले मजबूर को मजबूतियां हर पल सहारे भी ।

पता नहीं मन में आया कि पूछूं, सो पूछ लिया

वीनस केसरी said...

कहेगा कौन "जोगेश्वर" तुम्हें सीधी सरल बातें
घुमा कर लोग बोलेंगे करेंगे कुछ इशारे भी


bahut badhiyaa

95 :)

jogeshwar garg said...

झा साहब !
मज़बूर को मज़बूतियाँ कौन देता है यहाँ ?