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Saturday 8 August, 2009

अकड़ दिखा कर खडा रहा तो

अकड़ दिखा कर खडा रहा तो बहुत बहुत पछतायेगा
लोट-पोट हो जा चरणों में आंखों में बस जायगा

मैं तेजा-सा वीर बनूँ पर इसमें जोखिम भारी है
जिसे बचाऊंगा लपटों से वही मुझे डंस जाएगा

उसने तो झूंठे सच्चे इल्जाम लगा कर छोड़ दिए
एक अकेला तू बेचारा किस किस को समझायेगा

तेरी भी चुप मेरी भी चुप यह समझौता अच्छा है
तेरा मेरा हम दोनों का भेद छुपा रह जाएगा

माना मोटा-ताज़ा-तगडा भारी-भरकम है फ़िर भी
एक अकेला चना भाड़ में कितना ज़ोर लगायेगा

पतझड़ के मौसम पर मेरे खुशी मनाने वाले सुन
यह पौधा तो और खिलेगा गहरी जड़ें जमाएगा

धरती किया बिछौना तूने आसमान को ओढा है
"जोगेश्वर" अलमस्त फकीरी कब तक और निभाएगा

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