सब मुझको समझायेंगे
फिर तुमको बहलाएँगे
उलझी खूब पहेली है
कौन इसे सुलझाएंगे
होली पर भी कुछ पागल
दीवाली के गायेंगे
समझेगा भी कौन यहाँ
किस किस को समझायेंगे
जीती बाज़ी हारेंगे
अहम् जहां टकरायेंगे
पढ़े नहीं जो कभी कहीं
वो भी पाठ पढ़ाएंगे
सदियों से सहते आये
और नहीं सह पायेंगे
आग बुझाने वाले सुन
वो फिर आग लगायेंगे
"जोगेश्वर" को तीर लगें
फिर भी ग़ज़ल सुनायेंगे
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11 comments:
बहुत खूब गर्ग जी, बढ़िया रचना है ... सारी पंक्तियाँ अच्छी है ... बस चौथी पंक्ति 'कौन इसे सुलझाएंगे' कुछ जम नहीं रही है ...
पढ़े नहीं जो कभी कहीं
वो भी पाठ पढ़ाएंगे
आग बुझाने वाले सुन
वो फिर आग लगायेंगे
वाह वाह ! क्या बात है !
पढ़े नहीं जो कभी कहीं
वो भी पाठ पढ़ाएंगे
ये सही कही आपने .....!!
लिखते गीत ग़ज़ल बढ़िया,
एक बात बतलाएंगे ?
राजस्थानी - रचनाएं
किस दिन आप पढ़ाएंगे ?
जोगेश्वरजी ,सच बोलें!
अब कितना तरसाएंगे ?
… … … … …
मेल मिली है अभी अभी ,
हम भी राज़ छुपाएंगे !
बात मेरी जब रख लोगे ,
ख़ुश हो' शोर मचाएंगे !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बड़ा कांट छाट के ये चार शेर निकाले जो ज्यादा पसंद आये
गजल ६ बार पढनी पडी :)
उम्दा बात
छोटी बहर तो मेरी कमजोरी ही है
सब मुझको समझायेंगे
फिर तुमको बहलाएँगे
होली पर भी कुछ पागल
दीवाली के गायेंगे
पढ़े नहीं जो कभी कहीं
वो भी पाठ पढ़ाएंगे
"जोगेश्वर" को तीर लगें
फिर भी ग़ज़ल सुनायेंगे
achhi ghazal :) ...
तीर लगने पर भी आप रुकने वाले नहीँ है।जबरदस्त जज़बा है।अच्छी रचना के लिए बधाई हो गर्ग साहिब!
फिर भी ग़ज़ल सुनायेंगे....
beautiful !
bahut achi rachna
"जोगेश्वर" को तीर लगें
फिर भी ग़ज़ल सुनायेंगे
badhai aap ko
बेहतरीन ग़ज़ल.
भाई साहेब मेरे ब्लॉग पर भी फोटोग्राफी देखने के लिए पधारे -www.devendrasuthar.blogspot.com
Aanand aa gaya.
Kosalendradas
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