मिले मज़बूत को मज़बूतियाँ हर पल सहारे भी
उन्हें हासिल हमेशा ही निगाहें भी नज़ारे भी
किसे दें दोष गर ये ज़िंदगी सैलाब बन जाए
कभी मदहोश धाराएं कभी बेखुद किनारे भी
न जाने ज़िंदगी क्या क्या दिखायेगी अभी आगे
कभी कुहरा कभी पतझड़ कभी रिमझिम फुहारें भी
तुम्हारी बेरुखी कोई किसी दिन देख ले आकर
उसे विश्वास क्या होगा कभी हम थे तुम्हारे भी
बुरा है हाल गर मेरा तुम्हारा भी कहाँ अच्छा
इधर शोले बरसते हैं उधर पग पग शरारे भी
तुम्हारे द्वार से मैं लौट कर जाना अगर चाहूँ
न जाने कौन दे आवाज मुझको फिर पुकारे भी
कहेगा कौन "जोगेश्वर" तुम्हें सीधी सरल बातें
घुमा कर लोग बोलेंगे करेंगे कुछ इशारे भी
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6 comments:
मिले मज़बूत को मज़बूतियाँ हर पल सहारे भी
उन्हें हासिल हमेशा ही निगाहें भी नज़ारे भी
सुंदर ग़ज़ल..
jogeshwar ji
bahut hi umda sher.........
बुरा है हाल गर मेरा तुम्हारा भी कहाँ अच्छा
इधर शोले बरसते हैं उधर पग पग शरारे भी
lajabab
abhar..............
न जाने ज़िंदगी क्या क्या दिखायेगी अभी आगे
कभी कुहरा कभी पतझड़ कभी रिमझिम फुहारें भी
माशाअल्लाह !
बड़ा प्यारा शे'र कहा है , बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
जोगेश्वर जी ,
खूबसूरत पंक्तियां हैं । एक बात का निवारण करिए
मिले मजबूत को मजबूतियां हर पल सहारे भी
या फ़िर
मिले मजबूर को मजबूतियां हर पल सहारे भी ।
पता नहीं मन में आया कि पूछूं, सो पूछ लिया
कहेगा कौन "जोगेश्वर" तुम्हें सीधी सरल बातें
घुमा कर लोग बोलेंगे करेंगे कुछ इशारे भी
bahut badhiyaa
95 :)
झा साहब !
मज़बूर को मज़बूतियाँ कौन देता है यहाँ ?
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