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Friday, 28 May 2010

फूल मत तू

फूल मत तू सफलता की हाथ चाबी देख कर
लोग तो जलते रहेंगे कामयाबी देख कर

आपकी परछाइयों का है असर मत चोंकिये
रंग मेरी शक्ल का इतना गुलाबी देख कर

वो लगे अहसान गिनने तो हंसी आयी मुझे
ज़ख्म गिनने में उन्हीं की बेहिसाबी देख कर

नाम कितने हैं बड़े फैशन मनोरंजन मगर
शर्म भी शर्मा रही ये बेनक़ाबी देख कर

पाँव घायल और तलवे थे फफोलों से भरे
आप बिदके चाल को मेरी शराबी देख कर

कुछ बनो ऐसा कि चुन्धियाए ज़माने की नज़र
आँख नूरानी शक्ल वो आफताबी देख कर

थी जिन्हें उम्मीद "जोगेश्वर" ग़ुलामी सीख ले
वे सभी नाराज़ तेवर इन्क़लाबी देख कर

6 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाह...बहुत बढ़िया ग़ज़ल....

वीनस केसरी said...

थी जिन्हें उम्मीद "जोगेश्वर" ग़ुलामी सीख ले
वे सभी नाराज़ तेवर इन्क़लाबी देख कर


ये तेवर माशा अल्लाह
96 :)

Ra said...

जोगेश्वर जी..पहली बार यात्रा की आपके ब्लॉग की ....आप तो सच में कमाल करते हो ,,,,बड़े गज़ब के शेर लिखे है ,,,,आज लगा की नेता भी बुद्दिजीवी होते है और बहुमुखी प्रतिभा के धनी .....ऐसे शनदार शेर एक राज़स्थानी शेर ही लिख सकता है ....सर जी पहले प्रणाम और बाद में बधाई स्वीकारे

Udan Tashtari said...

नाम कितने हैं बड़े फैशन मनोरंजन मगर
शर्म भी शर्मा रही ये बेनक़ाबी देख कर

-बहुत उम्दा!

Devesh Vyas said...

आपका अंदाज औरों से जुदा और अलहदा ।
हम फिदा हैं आपकी हाजिर-जवाबी देखकर ।।

बेहतरीन रचना। बधाई....

jogeshwar garg said...

चौंक बैठे वो मेरी हाजिर-जवाबी देख कर
कह गए पछताओगे खानाखराबी देख कर