फूल मत तू सफलता की हाथ चाबी देख कर
लोग तो जलते रहेंगे कामयाबी देख कर
आपकी परछाइयों का है असर मत चोंकिये
रंग मेरी शक्ल का इतना गुलाबी देख कर
वो लगे अहसान गिनने तो हंसी आयी मुझे
ज़ख्म गिनने में उन्हीं की बेहिसाबी देख कर
नाम कितने हैं बड़े फैशन मनोरंजन मगर
शर्म भी शर्मा रही ये बेनक़ाबी देख कर
पाँव घायल और तलवे थे फफोलों से भरे
आप बिदके चाल को मेरी शराबी देख कर
कुछ बनो ऐसा कि चुन्धियाए ज़माने की नज़र
आँख नूरानी शक्ल वो आफताबी देख कर
थी जिन्हें उम्मीद "जोगेश्वर" ग़ुलामी सीख ले
वे सभी नाराज़ तेवर इन्क़लाबी देख कर
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6 comments:
वाह...बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
थी जिन्हें उम्मीद "जोगेश्वर" ग़ुलामी सीख ले
वे सभी नाराज़ तेवर इन्क़लाबी देख कर
ये तेवर माशा अल्लाह
96 :)
जोगेश्वर जी..पहली बार यात्रा की आपके ब्लॉग की ....आप तो सच में कमाल करते हो ,,,,बड़े गज़ब के शेर लिखे है ,,,,आज लगा की नेता भी बुद्दिजीवी होते है और बहुमुखी प्रतिभा के धनी .....ऐसे शनदार शेर एक राज़स्थानी शेर ही लिख सकता है ....सर जी पहले प्रणाम और बाद में बधाई स्वीकारे
नाम कितने हैं बड़े फैशन मनोरंजन मगर
शर्म भी शर्मा रही ये बेनक़ाबी देख कर
-बहुत उम्दा!
आपका अंदाज औरों से जुदा और अलहदा ।
हम फिदा हैं आपकी हाजिर-जवाबी देखकर ।।
बेहतरीन रचना। बधाई....
चौंक बैठे वो मेरी हाजिर-जवाबी देख कर
कह गए पछताओगे खानाखराबी देख कर
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