जो बातें ख़ुद समझ न पाये बच्चों को समझायेंगे
एक अछूती चादर पर हम कितने दाग़ लगा बैठे
सोचो घर जाकर अपनों से कैसे आँख मिलायेंगे
आना-जाना मिलना-जुलना यह दस्तूर रखो वरना
हम दोनों में अनबन क्यों है किस किस को बतलायेंगे
यह छोटी सी बात समझना उनको इतना मुश्किल क्यों
घर को आग लगाने वाले ख़ुद भी तो जल जायेंगे
वह सपना क्या सपना है जो आँख लगे तब आजाये
सपने ऐसे देखे हैं जो नींद उड़ा ले जायेंगे
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