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Wednesday, 25 March 2009

उनसे मिलने से पहले

उनसे मिलने से पहले तड़पन सी होती है
मिल कर बिछ्डो दिल में एक चुभन सी होती है

बिच्छू जैसा दंश याद का होता ज़हरीला
बिरहा की रातें कातिल नागिन सी होती है

अक्ल अलग कहती है मुझसे दिल कुछ और कहे
इनकी यह तक़रार मेरी उलझन सी होती है

दिल में आग आँख में पानी दोनों दुश्मन हैं
इन दोनों में जब देखो अनबन सी होती है

दुनियादारी जेठ दुपहरी तपती लू वाली
प्रेम फुहारें तो ठंडे सावन सी होती है

3 comments:

अनिल कान्त said...

बिच्छू जैसा दंश याद का होता ज़हरीला
बिरहा की रातें कातिल नागिन सी होती है ....

waah saahab gazab

Surendra Chaturvedi said...

तू मुझे से दूर कैसा है मैं तुझ से दूर कैसा हूँ
ये तेरा दिल समझाता है या मेरा दिल समझता है
सुरेन्द्र चतुर्वेदी

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर ...