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Thursday, 11 June 2009

इश्क में मुब्तिला नहीं होता

इश्क में मुब्तिला नहीं होता
तो मुसीबतजदा नहीं होता

बारहा हादसा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता

कर रहे थे उसे सभी सज़दे
कोई कैसे खुदा नहीं होता

रोज तूफ़ान भी तलातुम भी
कब यहाँ ज़लज़ला नहीं होता

बर नहीं आ रही मेरी कोशिश
उन तलक सिलसिला नहीं होता

रोज होती रही बहस कितनी
हाँ मगर फैसला नहीं होता

सितम की इन्तेहा हुयी मुझ पर
फिर भी उनसे गिला नहीं होता

पस्त होती यहाँ तभी मुश्किल
पस्त जब हौसला नहीं होता

क्यों हुआ कमनसीब "जोगेश्वर"
क्यों कभी भी नफ़ा नहीं होता

1 comment:

Surendra Chaturvedi said...

jyada achcha hota yadi urdu shabdon ka hindi arth ya samanarthee shabd diya hota.