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Tuesday, 23 June 2009

उसने चंद लकीरें छोडी

उसने चंद लकीरें छोडी मेरी मुट्ठी में
लोग कहे है माल करोडी मेरी मुट्ठी में

तेरी रेखा मेरी रेखा मिली यहाँ ऐसे
जैसे जमुना गंगा जोड़ी मेरी मुट्ठी में

दिन तो छलिया फिसल फिसल जाते है मुट्ठी से
कब ठहरी है रात निगोड़ी मेरी मुट्ठी में

शर्म समर्पण निष्ठा जैसी चीजें अब दुर्लभ
बची हुई है थोड़ी थोड़ी मेरी मुट्ठी में

रस्म रिवाजों का कायल था वह जिद्दी कितना
उसने सारी रस्में तोडी मेरी मुट्ठी में

उसकी खुशबू को छूने की उत्कंठा ऐसी
मचली खुजली सिहरन दौडी मेरी मुट्ठी में

"जोगेश्वर उसकी मुट्ठी में समा गया तब ही
उसने अपनी जान निचोडी मेरी मुट्ठी में

6 comments:

ओम आर्य said...

uasane chand lakire chhodi jisane mei jindagi ko modi...................kuchh isi tarah ki falsafa byan karati kawita hai.....

Science Bloggers Association said...

वाह, क्‍या बात है आपकी मुटठी में। बधाई।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

निर्मला कपिला said...

उसने चंद लकीरें छोडी मेरी मुट्ठी में
लोग कहे है माल करोडी मेरी मुट्ठी में
बहुत खूब बधाई

सदा said...

रस्म रिवाजों का कायल था वह जिद्दी कितना
उसने सारी रस्में तोडी मेरी मुट्ठी में

बेहतरीन प्रस्‍तति के लिये बधाई ।

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया...

वीनस केसरी said...

आज तो बहुत अच्छा लिखा है आपने
बधाई

वीनस केसरी