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Wednesday 8 July, 2009

सिक्का

समझ रहा है खुदको सबसे समझदार सिक्का
खनक खनक कर ध्यान खींचता बार बार सिक्का

इठलाकर इतराकर मुझको क्या समझाये तू
मुझे पता है तू ही सबसे असरदार सिक्का

उल्टे-सीधे खोटे-चोखे काम कराता है
इस दुनिया में सबसे ज्यादा गुनहगार सिक्का

जेलें की आबाद सजाये कोठे भी इसने
फिर भी होना मुश्किल यारों गिरफ्तार सिक्का

हर सिक्के के दो पहलू होते ही हैं यारों
बार बार धमकाए मुझको राजदार सिक्का

दूर गगन में चाँद सरीखा लगे गरीबों को
और अमीरों को कुत्ते सा वफादार सिक्का

मोमिन को, पादरियों को यह खूब नसीहत दे
और पंडितों को सिखलाये सदाचार सिक्का

"जोगेश्वर" का मोल लगाना कितना मुश्किल है
रोया होगा रात रात भर चमकदार सिक्का

2 comments:

वीनस केसरी said...

आज कई दिन बाद आपने पोस्ट की है
अच्छी गजल है
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

वीनस केसरी

Udan Tashtari said...

दूर गगन में चाँद सरीखा लगे गरीबों को
और अमीरों को कुत्ते सा वफादार सिक्का

-गज़ब भाई..वाह!