उनसे मिलने से पहले तड़पन सी होती है
मिल कर बिछ्डो दिल में एक चुभन सी होती है
बिच्छू जैसा दंश याद का होता ज़हरीला
बिरहा की रातें कातिल नागिन सी होती है
अक्ल अलग कहती है मुझसे दिल कुछ और कहे
इनकी यह तक़रार मेरी उलझन सी होती है
दिल में आग आँख में पानी दोनों दुश्मन हैं
इन दोनों में जब देखो अनबन सी होती है
दुनियादारी जेठ दुपहरी तपती लू वाली
प्रेम फुहारें तो ठंडे सावन सी होती है
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3 comments:
बिच्छू जैसा दंश याद का होता ज़हरीला
बिरहा की रातें कातिल नागिन सी होती है ....
waah saahab gazab
तू मुझे से दूर कैसा है मैं तुझ से दूर कैसा हूँ
ये तेरा दिल समझाता है या मेरा दिल समझता है
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
बहुत सुंदर ...
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