Subscribe

RSS Feed (xml)

Powered By

Skin Design:
Free Blogger Skins

Powered by Blogger

Wednesday 17 June, 2009

नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे

नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे कैसी जोर-ज़बरदस्ती
प्यार मुसीबत निकला यारों हम तो समझे थे मस्ती

नहीं बसाने से बसती है और उजाडे उजडे क्यों
उजड़ गयी तो बसना मुश्किल ऐसी अज़ब ग़ज़ब बस्ती

माँ की ममता, वतनपरस्ती और ग़रीबों की इज्ज़त
मैं कहता अनमोल चीज है, उनके लिए बहुत सस्ती

मायानगरी के वाशिंदे बहुत हैसीयत वाले हैं
हम रहवासी प्रेमनगर के कहाँ हमारी है हस्ती

जाने क्या क्या पाया इसने जाने क्या क्या खोया है
"जोगेश्वर" सब जमा-खर्च कर हाथ रही फाका-मस्ती

1 comment:

वीनस केसरी said...

जोगेश्वर आपकी आज की गजल बहुत पसंद आई

वीनस केसरी