Subscribe

RSS Feed (xml)

Powered By

Skin Design:
Free Blogger Skins

Powered by Blogger

Wednesday, 8 April 2009

विजय पराजय

विजय-पराजय यश-अपयश पर इठलाना मुरझाना क्या
ये सब बातें आनी जानी पाना क्या खो जाना क्या

मंजिल को पाकर कर लेना जी भर कर आराम मगर
राह किनारे खड़े पेड़ की छाँव तले सुस्ताना क्या

मेरे अपने ले कर आए ज़ख्मों की सौगातें क्यों
उलझी-उलझी एक पहेली अब उसको सुलझाना क्या

मैं तो समझ चुका हूँ लेकिन कैसे समझाऊँ सबको
साजन ही अंधा हो तो फ़िर अपना रूप सजाना क्या

"जोगेश्वर" यह बात पते की उन तक पहुंचा दे कोई
दिल में दूरी बनी रही तो फ़िर यह हाथ मिलाना क्या

1 comment:

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया लिखा ... बधाई आपको।